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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होगा। मेरा भी [कुछ] ऐसा ही विश्वास है। जो स्वदेशीको पूर्णतया अंगीकार नहीं करते वे, निस्सन्देह, पिछड़ जायेंगे। यह अपील काफी लम्बी है। मैंने तो केवल सार ही प्रस्तुत किया है। और चूँकि उसमें दी गई सब दलीलें सर्वप्रसिद्ध हैं इसलिए मैंने सारी अपीलको प्रकाशित करना जरूरी नहीं समझा है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ३०-१०-१९२१
 

१६०. पत्र: मियाँ मुहम्मद हाजी जान मुहम्मद छोटानीको

३१ अक्तूबर, १९२१

प्रिय छोटानी मियाँ,

आपका वह पत्र मिला जिसमें आपने एक लाख चरखे देने की बात कही है। उसके लिए धन्यवाद। आपने बहुत बड़ा दान दिया है और मुझे यकीन है कि इस बातका भारतीयों―खासकर मुसलमानोंके मनपर बहुत असर होगा। बम्बई प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के पास आपका पत्र भेजते हुए मैं मन्त्रियोंको आपकी इस इच्छाका खयाल रखनेको लिख दूँगा कि मैमन समाजके लोगोंको प्राथमिकता दी जाये। मुझे नहीं मालूम कि आपने अपने मनमें कुछ तय कर रखा है या नहीं कि इस काममें आप कितना पैसा खर्च करना चाहते हैं; मेरा तो अनुभव यह है कि सस्ता चरखा बादमें चलकर बड़ा खर्चीला हो जाता है। एक अच्छे, ठोस और वजनदार चरखेपर छ: रुपये से कम लागत नहीं बैठेगी। इसलिए अगर आप इतना बड़ा दान न देना चाहें तो मेरी सलाह है कि चरखोंकी संख्या कम कर दीजिए। मैं तो यह सलाह भी दूँगा कि आप जो रकम खर्च करना चाहते हों वह सब सूत कतवानेपर ही खर्च न करें बल्कि गरीब औरतें जो सूत कातें उस सूतको ज्यादा ऊँचे भावपर खरीदनेमें और इस कामको अंजाम देनेके लिए विशेष कार्यकर्ताओंको नियुक्त करनेमें करें। इस तरह आप अपने दानको रकमका उपयोग लगभग अपनी ही देखरेखमें और अधिकसे-अधिक मितव्ययिताके साथ कर सकेंगे। काठियावाड़में ऐसा ही किया जा रहा है। कहनेकी जरूरत नहीं कि ये बातें सिर्फ आपके मार्ग-दर्शनके लिए लिख रहा हूँ; इनसे आपके कार्यके मूल्यमें और उसकी महत्तामें कोई फर्क नहीं पड़ता।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० ७६४९) की फोटो नकलसे।