१६१. पत्र: महादेव देसाईको
नववर्ष दिवस[१]
मौनवार [३१ अक्तूबर, १९२१]
वर्ष प्रतिपदा और मौनवार, इन दोनोंका मिलन मेरे लिए तो बहुत शुभ है। आजसे मेरे चरखेका व्रत शुरू हुआ है। प्रतिदिन दूसरी बारका भोजन करनेसे पहले आधा घंटा कातूँगा और अगर न कात पाया तो भोजन ही न करूँगा। यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं है तथापि चूँकि मैंने व्रत लिया है इसीलिए मेरा कातना कुछ नियमित रूपसे चलेगा। जब मैं रेलमें होऊँ तब यह बन्धन नहीं होगा।
दीवालीके उपलक्षमें लिखा हुआ तुम्हारा पत्र और भजन मिले। ये किसलिए लिखे? तुम्हारा धर्म तो जल्दसे-जल्द रोग-शय्यासे उठनेका था। इस कामके लिए तुम दुर्गाको अथवा किसी अन्य व्यक्तिको कैसे जगा सकते हो? तुम्हारे तार भी मिले। एक तारमें ‘एम्बलेजन यूनिवर्सिटी’ शब्द लिखे हुए मिले जिन्हें कोई भी न समझ सका। विजय-राघवाचार्य चालाक आदमी नहीं है और ऋषि भी नहीं है। ‘नॉट’ शब्द तो भूलसे रह गया होगा, लेकिन जब मैंने उन्हें एक कड़ा तार भेजा तब उन्होंने उत्तरमें अपनी भूल क्यों न सुधारी?
नये वर्षमें तुम तन, मन और हृदयसे स्वस्थ रहो―यह मेरा तुम दोनों को आशीर्वाद है।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती पत्र (एस० एन० ११४२३) की फोटो-नकलसे।
१६२. तार: पारसी रुस्तमजीको
१ नवम्बर, १९२१
डर्बन
न्यासको भेजे गये अधिकार पत्रमें फेरफारकी आवश्यकता। बुनाई शालाके
लिए चालीस हजारके उपयोगका अधिकार दें तथा और रुपया भेजें।
गांधी
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ७७२५) की फोटो-नकलसे।