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टिप्पणियाँ

 

लेकिन “आजका लाभ ले लो; कल किसने देखा है”, स्वेच्छाचारी और संयमी दोनों ही अपने-अपने जीवन व्यवहारमें इस नियमका उपयोग करते हैं।

नया वर्ष तुम सबके लिए फलदायक हो।

[गुजरातीसे]
बापुनी प्रसादी
 

१६४. पत्र: वालजीभाई देसाईको

रेलमें
बुधवार [२ नवम्बर, १९२१][१]

प्रेससे राजस्थान सेवा संघके पतेपर ‘यंग इंडिया’ के अग्रिम प्रूफ भेजनेके लिए कहना। अगर वे बुधवार रातको डाकमें डाले जायें या बृहस्पतिवारको बहुत सवेरे, तो उसी दिनकी सवेरेकी मेलसे अजमेर पहुँच जायेंगे।

मोहनदासके वन्देमातरम्

भाईश्री ५ वालजी देसाई


‘यंग इंडिया’


अहमदाबाद
गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०४०) की फोटो-नकलसे।
सौजन्य: वालजीभाई गोविन्दजी देसाई।
 

१६५. टिप्पणियाँ

अनशन

जेलमें अनशन करनेमें असहयोगी कैदी जो जल्दी कर डालते हैं उसके खतरेके विरुद्ध मैं जितनी भी चेतावनी दूँ वह कम है। इस अनशनका समर्थन हम यह कह-कर तो कर ही नहीं सकते कि वह जेलकी तकलीफदेह बन्दिशोंको हटवानेका एक उपाय है। क्योंकि अगर जेलमें वे बन्दिरों न हों, जिनको हम अपने साधारण जीवनमें नहीं मानना चाहते, तो वह जेल ही क्या है। अनशन तो तभी ठीक कहा जा सकता है जब हमारे साथ अमानुषिक व्यवहार किया जाता हो अथवा हमें हमारे धर्मके खिलाफ खाना खिलाया जाता हो या ऐसा खाना खिलाया जाता हो जो मनुष्यके खाने योग्य न हो। हम खाना खानेसे तब भी इनकार कर सकते हैं जब वह हमें अपमान-

  1. पत्रपर “अजमेर ३ नवम्बर, १९२१” की मुहर लगी हुई है। यह पत्र गांधीजीने दिल्ली जाते हुए रास्ते में लिखा था।>