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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जनक रीतिसे दिया जाये। अथवा यों कहें कि जब उसको लेनेसे हम भूखके गुलाम साबित होते हों तब हमें खाना लेनेसे इनकार कर देना चाहिए।

आखिर कैद हो गई

चटगाँवके नेता और असम-बंगाल रेलवेके हड़ताल-आन्दोलनके प्राण श्री सेन-गुप्तको उनके अठारह साथियोंके साथ आखिर कैदकी सजा दे दी गई। लेकिन बहुत दिनकी नहीं। उन्हें और उनके साथियोंको सिर्फ तीन-तीन मासकी सख्त कैदकी सजा दी गई है। श्रीमती सेनगुप्त अपने पतिके विषयमें लिखती हैं कि वे सजा होनेके खयालसे बहुत प्रसन्न थे। जब मैं चटगाँव गया था तब मुझे बताया गया था कि चटगाँव के लोगोंने तो स्वराज्य प्रायः प्राप्त कर लिया है। यह “प्रायः” शब्द बड़ा भ्रामक है। उसका अर्थ पूर्णताके समीप या पूर्णतासे अत्यन्त दूर, दोनों ही हो सकते हैं। फिर भी हम उसका प्रयोग दोनोंमें से किसी भी अवस्था के लिए कर सकते हैं। परन्तु यदि चटगाँवके लोग सचमुच ही पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करना चाहते हों तो उन्हें अपने [पहनने-ओढ़नेके] तमाम कपड़े अपने घरोंमें खुद ही अपने हाथसे सूत कातकर बुन लेने चाहिए और विदेशी कपड़ा बेचनेवालोंको प्रलोभन न देना चाहिए। चटगाँवकी अदालतें सूनी और सरकारी पाठशालाएँ खाली हो जानी चाहिए। अगर वे इतना कर सकें तो उन्हें ‘सविनय अवज्ञा’ करनेकी भी जरूरत न रहेगी। परन्तु शायद उनमें इतनी एकता या शक्ति न हो। फिर भी यदि जनताका एक बड़ा बहुमत स्वराज्य चाहता हो तो उसे थोड़ेसे लोग रोक नहीं सकते। किन्तु अधिक लोगोंको उसका अधिकारी बनने के लिए सविनय अवज्ञा रूपी कठिन तपस्याकी अग्निमें से निकलना होगा।

कष्ट-सहन किसलिए?

हम इन कैदकी सजाओंका सच्चा मतलब समझनेमें गलती न करें। यद्यपि इनसे सरकार सचमुच तंग होती है; तथापि इनको प्राप्त करनेमें हमारा हेतु ‘सरकारको तंग करना’ नहीं होता है। हम नियम पालन तथा तपस्याके लिए जेल जाते हैं। हम इसलिए जेल जाते हैं कि हम उस सरकारकी अधीनतामें जेलसे बाहर रहना बुरा मानते हैं, जिसे हम तमाम बुराइयोंसे भरी हुई मानते हैं। इसलिए अब हमें कोई भी ऐसा उपाय करनेमें कसर न रखनी चाहिए जिससे सरकार यह जान ले कि अब हम किसी तरह भी उसकी अधीनतामें नहीं रहना चाहते और आजतक किसी भी सरकारने इतना खुला विरोध―चाहे वह कितना ही आदरयुक्त क्यों न हो–बरदाश्त

नहीं किया है। इसलिए यह तो कहा ही जा सकता है कि अगर हम अभीतक जेलकी दीवारोंके बाहर हैं तो उसके लिए हम भी उतने ही जिम्मेवार हैं जितनी कि सरकार है। हम एक संस्थाके सदस्यकी हैसियतसे सावधानीसे काम करते जा रहे हैं। हम अभीतक सरकारके कई कानून अपनी खुशीसे मान रहे हैं। मसलन, मद्रास सरकारकी आज्ञाका उल्लंघन करके गिरफ्तार होनेसे मुझे कोई नहीं रोक सकता था[१]

  1. देखिए “टिप्पणियाँ”, २९-९-१९२१ का उप-शीर्षक “पीड़ित मद्रास”।