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टिप्पणियाँ

किन्तु खुद मैंने ही उसे टाला। इसी प्रकार सिपाहियोंके बैरकोंमें बगैर इजाजत और उनमें अनुचित रूपसे प्रवेश करके कैद होनेसे भी मुझे अपनी दूरदर्शिता या कमजोरीके सिवा कोई नहीं रोक सकता। मेरा तो यह निश्चित विश्वास है कि ये बैरकें राष्ट्रीय सम्पत्ति हैं; और उस सरकारकी सम्पत्ति नहीं हैं जिसे मैं जनताकी सच्ची प्रतिनिधि नहीं समझता। इसलिए एक ओर एक खराब सरकारके अन्तर्गत जेलसे बाहर रहना दुःखदायक है यह कहना और दूसरी ओर ऐसे कारणोंसे जो पूर्णतः नैतिक नहीं हैं, बल्कि अधिकांशमें समयोपयोगी हैं, कैदको जान-बूझकर टालना, इन दोनों बातों में ऊपर ही ऊपर देखनेसे विरोध मालूम होता है। इस तरह हम कैदसे इसलिए बचते हैं कि एक तो हमारे विचारसे राष्ट्र अभी पूर्ण सविनय विद्रोहके लिये तैयार नहीं हुआ है और दूसरे हम यह समझते हैं कि देशमें अभी स्वेच्छापूर्ण आज्ञापालन और अहिंसाका वातावरण पक्का नहीं बना है और तीसरे, हमने अभी कोई ऐसा सुसंगठित रचनात्मक कार्य नहीं किया है जिससे लोगोंमें आत्मविश्वास उत्पन्न हो जाये। इसलिए हम अभी सविनय अवज्ञा, जो एक शान्तिपूर्ण विद्रोह होगा, शुरू नहीं करते; बल्कि महज अपने कार्यक्रम के अनुसार सामान्य काम करते हुए और मत-प्रकाशनकी पूरी स्वतन्त्रताकी रक्षा करते हुए तथा बगावतके अतिरिक्त अन्य कार्योंको करते हुए कैद होते हैं।

इसलिए यह साफ है कि एक बुरी सरकारकी जेलोंसे हमारा बाहर रहना तभी तक ठीक कहा जा सकता है जबतक उसके लिए वैसे ही असाधारण कारण हों। और हमें पूरा स्वराज्य तो तभी मिलेगा जब या तो हम जेलोंमें चले जायेंगे या सरकारको अपनी इच्छाके सामने झुकायेंगे। इसलिए चाहे सरकार हमारे जेल जानेसे तंग आती हो, चाहे प्रसन्न होती हो, हमारे लिए तो सुरक्षा और सम्मानका स्थान बस एक जेल ही है। और यदि यह स्थिति हमें मंजूर हो तो इसका अर्थ यह होता है कि हमें जब अपना कर्त्तव्य पालन करते हुए जेल जाना पड़े तब उससे हमें प्रसन्न ही होना चाहिए; क्योंकि उससे हममें बल बढ़ता है, तथा उस रूपमें हम अपने उचित कर्त्तव्य-पालनकी कीमत अदा करते हैं। और यदि अपनी सच्ची शक्तिको प्रदर्शित करना ही उत्कृष्ट आन्दोलन हो तो हमें विश्वास होना चाहिए कि जब एक भी मनुष्य जेल जाता है तो उससे जनताकी शक्ति बढ़ती है और स्वराज्य नजदीक आता है।

कुछ विलक्षण बात

मेरे कई मित्र आकर कानमें मुझसे कहते हैं कि युवराजके आने के समय हमें कुछ-न-कुछ ऐसा काम करना चाहिए जिसमें कुछ विशेषता हो, जो सबको चकित कर दे। इसका मतलब यह नहीं है कि वह काम युवराजपर असर डालनेके लिए किया जाये या लोगोंको दिखाने के लिए किया जाये। परन्तु मैं तो युवराजके इस जबरदस्ती आगमनके अवसरका उपयोग अपने सब लोगोंको अधिक कार्यशील बनाने के लिए करना चाहता हूँ। युवराजपर तथा सारे संसारपर उसका बहुत अच्छा असर होगा, क्योंकि इस तरह हम खुद अपने आपपर ही असर डालेंगे। स्वराज्यका सबसे नजदीकका रास्ता तो है सामाजिक और वैयक्तिक आत्म-संस्कार, आत्माभिव्यक्ति और स्वावलम्बन। मुझे यह कल्पना सचमुच बड़ी प्यारी मालूम होती है कि युवराजके आने के पहले हम