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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सब जेलोंको भर दें। परन्तु मुझे उसके लिए जोर-शोरसे स्वदेशीके प्रचारके सिवा दूसरा मार्ग ही नहीं दिखाई देता। निःसन्देह उस दिशामें हमारी प्रगति तो बहुत हुई है, परन्तु उसमें क्रान्तिकारी अथवा बिजली-जैसी गति नहीं है। अब हमारा काम इस प्रकार चींटीकी चालसे नहीं चल सकता; बल्कि हमें दिन-दूनी और रात चौगुनी प्रगतिकी परम आवश्यकता है। स्वदेशीकी भावनाके स्पर्श-मात्रसे हमारा काम न चलेगा; वह हमारे मनमें पूरी तरह भर जानी चाहिए। तब हम आप ही आप हजारोंकी संख्या में इस तरह सविनय अवज्ञा भंग करनेके लिए आगे बढ़ेंगे, मानो हमारे सबके मनमें एक ही खयाल हो। आज पूरा आत्मविश्वास न होनेके कारण हमें एक-एक पैर गिन-गिनकर रखना पड़ता है और यह ठीक भी है। असलमें अभी तो मुझे यह भी यकीन नहीं हुआ है कि हजारों लोग जेल जानेके लिए तैयार है या अहिंसाके सन्देशको यहाँतक समझ गये हैं कि उकसानेपर भी कदापि हिंसा न करेंगे।

छँटनी

मद्रास सरकार सभी खास-खास लोगोंको छाँट-छाँटकर बड़ी तेजीसे बीन रही है। श्री याकूब हसन और डाक्टर वरदराजुलु उसके नये शिकार हैं। श्री याकूब हसनको सभी लोग एक अथक परिश्रमी खिलाफत कार्यकर्त्ता और राष्ट्रवादी व्यक्तिके रूपमें जानते हैं। वे कालीकटकी एक भीड़को हिंसा करनेसे रोकनेकी कोशिश करते हुए बाध्य होकर असहयोग करनेके कारण कैद भोग चुके हैं। क्षणिक कमजोरी दिखानेके कारण वे अपनी मियाद खतम होनेसे पहले ही रिहा कर दिये गये थे। उन्होंने ऐसी कम-जोरीके कारण माफी माँगी थी जिसे श्री याकूब हसनकी स्थितिमें कोई भी आदमी दिखा सकता है। मद्रास सरकारने अब उनको यह दिखानेका मौका दिया है कि वे किस मिट्टीके बने हैं। डाक्टर वरदराजुलुको मद्रास अहातेके बाहर उतने लोग नहीं जानते, लेकिन स्थानीय रूपसे वे अपनी योग्यता और कर्मठताके लिए काफी प्रसिद्ध हैं और लोग उनके स्वार्थ-निरपेक्ष देशप्रेमके लिए उनका बड़ा आदर करते हैं। वे जी-जानसे जुट कर काम करनेवाले कार्यकर्त्ताओंका एक दस्ता तैयार कर रहे थे और बड़े कारगर ढंगसे स्वदेशीका काम चला रहे थे। वे अपने किसी भाषणके कारण बिलकुल ऐसे ही गिरफ्तार कर लिये गये हैं जैसे श्री याकूब हसन अपने तंजौरके भाषणके कारण। हिंसात्मक कार्योंकी शुरूआत हो जानेका खतरा अब प्रायः दूर हो गया है। लोग समझ गये हैं कि उनकी प्रगति बिलकुल अहिंसक रहनेसे ही हो सकती है। इस प्रकारको प्रत्येक गिरफ्तारीसे सरकारकी शान कम होती है और उसकी तौहीन होने अथवा उसका मजाक उड़नेकी गुंजाइश पैदा होती है। असहयोगियोंके मजाक उड़ाने और तौहीन करनेसे उसका जितना नुकसान होता है वह उस नुकसानका आधा भी नहीं है जो स्वयं सरकार द्वारा इस प्रकार की गई गिरफ्तारियोंसे होता है।

विश्रामोपचार

और जनताके मनसे जेलोंका आतंक निकल गया है। एक या दो व्यक्तियोंको छोड़कर शायद ही कोई असहयोगी ऐसा होगा जिसने जेल जानेमें जरा-सी भी हिचक