दिखाई हो। उलटे प्रायः लोग इसे आरामका इलाज मानते हैं। स्वराज्यकी स्थापनाके लिए सबसे अच्छी स्थिति वही होगी जिसमें अहिंसाका वातावरण हो―जो सबसे ज्यादा जरूरी है―लोगोंके मनसे जेलका आतंक निकल जाये और जेल जानेवालोंके कारण कामकी सरगर्मी और भी बढ़ जाये।
स्वस्थ राष्ट्रीयताका सबूत
स्थितिका सही-सही अध्ययन करनेवाले दो पर्यवेक्षकोंके पत्रोंसे यह पता चलता है कि कैदकी सजाओंसे निराशाकी भावना पैदा होनेके बजाय राष्ट्रीयताके अधिक स्वस्थ विकासको प्रोत्साहन मिलता है। बारीसालसे एक मित्र लिखते हैं:
- हिन्दू-मुसलमानोंकी एकताके लिए, जो अब काफी पक्की है, और विदेशी वस्त्रोंके बहिष्कारके लिए, जो जनतामें अब पूरी तरह सफल हो चुका है, पूर्वी बंगाल पीर बादशाह मियाँकी गिरफ्तारीका बड़ा आभारी है।
इस बारेमें आन्ध्र देशका प्रमाण भी इतना ही सबल है। आन्ध्र के पत्र में कहा गया है:
- यद्यपि स्वदेशीको वास्तविक भावना अभी जनताके हृदयपर विजय नहीं प्राप्त कर सकी है फिर भी इस बातके काफी सबूत मौजूद हैं कि इस आन्दोलनके प्रति लोगोंकी आस्था बढ़ती जा रही है। कई स्थानोंमें आवश्यक खादी उपलब्ध नहीं है। बुनकर अभी स्वदेशी सूत बुनने के लिए पूरी तरह राजी नहीं हुए हैं, और जो राजी भी हैं उनके लिए काफी सुत नहीं मिलता। इस दिशामें एक बातसे प्रगति बढ़ गई प्रतीत होती है और वह है सरकार द्वारा दमनकी नीतिका आश्रय लेना। अनेक सुस्त और उदासीन लोग किसी-न-किसी कांग्रेस कार्यकर्ताक गिरफ्तार किये जाने और जेल भेजे जानेकी वजहसे क्रियाशील हो गये हैं और यदि बड़े पैमानेपर गिरफ्तारियाँ की जाने लगी तथा कैदको सजाएँ दी जाने लगी तो इसमें शक नहीं है कि सभी दिशाओं में प्रगति और भी बढ़ जायेगी। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे हम देखते हैं कि हिंसात्मक कार्योंका खतरा कम होता जाता है।
मुझे कराचीसे जो भी पत्र लिखता है वह इसी बातकी पुष्टि करता है कि लोगोंमें जैसे-जैसे अनुशासन और आत्म-नियन्त्रण बढ़ता जाता है और वे स्वदेशीको अपनाते जाते हैं वैसे-वैसे उनकी शक्ति भी बढ़ती जाती है। इन सबका कारण यह है कि इन विशिष्ट कैदियोंपर कराचीमें मुकदमा चलाया जा रहा है। इस मुकदमे के माध्यमसे सरकार और जन-साधारणको अहिंसाका और ऐसे साहसका सबक सिखाया जा रहा है जो प्रायः खुली अवज्ञा-जैसा ही है। ब्रिटिश भारतकी एक अदालत में कराचीमें पहली बार यह बात कही गई है कि “हमारे मनमें तुम्हारी अदालतोंके लिए कोई इज्जत नहीं है।” इससे भी बड़ी बात यह है कि न्यायाधीश अदालतके इस प्रकार खुले आम किये गये अपमानके सम्बन्धमें कुछ भी नहीं कर सका है। क्यों? इसलिए