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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि इस बातको कहनेवाले भारी-भरकम मनुष्य शौकत अलीके मनमें (न्यायाधीश) कैनेडीके प्रति व्यक्तिश: किसी प्रकारका रोषका भाव नहीं था। उन्होंने यह कहकर वास्तवमें उस मनुष्यके प्रति, जो न्यायाधीशकी कुर्सीपर बैठा था अपनी आत्मीयताका परिचय दिया था कि वह जिस व्यवस्थाका अन्ध-समर्थक है उससे वे घृणा करते हैं।

तर्क-संगत परिणाम

इन सब दलीलोंका तर्क-संगत परिणाम यही निकलता है कि हमें शीघ्रतासे बड़े पैमानेपर इच्छापूर्वक गिरफ्तार होनेके लिए अपने आपको संगठित कर लेना चाहिए। इसमें उद्दण्डता, कठोरता अथवा छीना-झपटी नहीं की जानी चाहिए, हिंसा तो कभी की ही नहीं जानी चाहिए; बल्कि इसे बहुत शान्ति, सौम्यता, विनय, नम्रता, भक्तिभाव और साहसके साथ करना चाहिए। दिसम्बरके अन्ततक प्रत्येक कार्यकर्त्ताको जेलके भीतर पहुँच जाना चाहिए, बशर्ते कि उससे विशेष रूपसे यह न कहा जाये कि वह इस संघर्षके हितकी दृष्टिमें जेल जानेका प्रयास न करे। परन्तु, यह याद रखना चाहिए कि सविनय अवज्ञामें हम स्वयं गिरफ्तारीको न्योता देते हैं और इसीलिए बहुत थोड़े-से लोगोंको इससे बरी रखा जा सकता है।

आवश्यक शर्तें

सविनय अवज्ञा केवल वे लोग ही कर सकते हैं जो राज्य द्वारा लागू किये गये परेशान करनेवाले ऐसे कानूनोंतक का स्वेच्छासे पालन करनेमें विश्वास करते हों, जो उनकी आत्मा अथवा धर्मको ठेस नहीं पहुँचाते हों और जो उसी तरह स्वेच्छासे सवि- नय अवज्ञाका दण्ड सहनेके लिए तैयार हों। अवज्ञा विनयपूर्ण हो, इसके लिए जरूरी है कि उसमें हिंसा बिलकुल न हो, क्योंकि उसका अन्तर्निहित सिद्धान्त यह है कि स्वयं कष्ट उठाकर, अर्थात् प्रेम द्वारा विरोधीका हृदय जीता जाये।

खिलाफत, पंजाब या स्वराज्यके प्रयोजनके लिए सविनय अवज्ञा करनेवालों के मनमें हिन्दू-मुस्लिम एकताकी आवश्यकताके बारेमें पूर्ण निष्ठा होनी चाहिए और उसका आधार वक्तकी जरूरत नहीं, बल्कि सच्चा प्रेम होना चाहिए। सविनय अवज्ञा करनेवालोंको स्वदेशीमें विश्वास रखना चाहिए और इसीलिए उन्हें केवल हाथ-कते सूतके बने कपड़े काममें लाने चाहिए। व्यावहारिक दृष्टिसे यदि भारतके ढ़ाई सौ जिलोंमें से एक भी जिला इस काम के लिए तैयार नहीं है तो मैं इस साल स्वराज्य प्राप्त करना प्रायः असम्भव मानता हूँ। यदि एक भी जिला ऐसा मिल सके जिसकी नब्बे फीसदी आबादीने विदेशी कपड़ेका बिलकुल बहिष्कार कर दिया हो और जो अपनी जरूरतका पूरा कपड़ा हाथसे कात-बुनकर तैयार करती हो, यदि उस जिलेकी पूरी आबादी, चाहे उसमें हिन्दू, मुसलमान, पारसी, सिख, ईसाई अथवा यहूदी कोई भी हों, बड़े मेल-जोलसे रहती हो, यदि उसकी पूरी हिन्दू आबादी छुआछूतके पापसे मुक्त हो चुकी हो और यदि उसके प्रत्येक दस निवासियोंमें से कमसे-कम एक व्यक्ति जेल जानेके लिए अथवा फाँसीके तख्तेपर चढ़नेके लिये तैयार हो, और जब उस जिलेमें सविनय, शान्तिपूर्वक और सम्मानपूर्वक ढंगसे सरकारकी मुखालफत की जा रही हो