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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं। उपयोगी ढंगसे एक लाख चरखे बांटनेका काम आसान नहीं है। ये चरखे केवल उन्हीं लोगोंको दिये जा सकते हैं जो हर दृष्टिसे सुपात्र हों। इसलिए पूनियाँ देने और सूत लेनेका प्रबन्ध किया जाना चाहिए।

दो विद्यार्थी

श्री मुहम्मद हुसैन और श्री शफीक रहमान किदवई राष्ट्रीय मुस्लिम विश्वविद्यालयके छात्र हैं। मौलाना मुहम्मद अलीने उनको आन्ध्र जिलेमें नियुक्त किया था। वे वहाँ बिना कोई दिखावा किये बहुत अच्छा काम कर रहे थे। वे तो जेल चले भी गये हैं जब कि उनके नेतापर अभी मुकदमा ही चल रहा है। वे जिन परिस्थितियों में जेल गये उसका सजीव चित्रण उस पत्र में किया गया है जो उन्होंने जेल जाते-जाते रास्ते में लिखकर मुझे भेजा है। उसे मैं ज्योंका-त्यों नीचे उद्धृत कर रहा हूँ:

गुण्टकलसे आपको विदा करनेके बाद हम अडोनी चले गये जहाँ हमें डा० हरिसर्वोत्तम रावका तारसे यह निर्देश मिला कि हम कड़प्पा आ जायें क्योंकि वहाँ तीन कांग्रेस कार्यकर्ता गिरफ्तार हो गये थे। हम ग्यारह अक्तूबरको वहाँ चले गये और गण्टूरके कुछ साथियोंके साथ काम करने लगे। वहाँ हमने कई सभाएँ की और कांग्रेस तथा खिलाफत समितियाँ कायम कीं। २१ अक्तूबरको छः हजारसे भी अधिक लोगोंकी विशाल सभामें हमने फतवा वितरित किया और श्रोताओंने खड़े होकर कराची-प्रस्तावका समर्थन किया। वहाँ हमने १९०० लोगोंके हस्ताक्षर लिये और अंकारा भेजनेके लिए ढ़ाई हजार रुपये जमा किये। २४ तारीखकी शामको सभी कार्यकर्त्ताओंपर दफा १४४ तामील कर दिया गया, जिसके द्वारा दो महीनेके लिए हमारे बोलनेपर पाबन्दी लगा दी गई। कल तड़के हमें अदालतमें हाजिर होकर नेकवलनीकी जमानत देनके लिए सम्मन दिये गये। उसके मुताबिक हम कचहरी चले गये और वहाँ कलक्टरकी इजाजतसे (यूरोपीय) पुलिस सुपरिंटेंडेंटसे दो घंटेतक गैर-रस्मी तौरपर बातचीत करते रहे। उसके बाद मुकदमा शुरू हुआ और हमपर दफा १०८ के मातहत देशद्रोहके लिए भड़कानेवाले भाषण करने और दफा १२४-क के अधीन फतवा वाँटकर और उसकी व्याख्या करके सैनिकोंको देशद्रोहके लिए भड़कानेका इल्जाम लगाया गया। सबूतके दो गवाहोंके बयान होने के बाद हमने अपने बयान दिये और अदालत तीसरे पहर ४ बजेतक के लिए उठ गई। सभीको यह देखकर बड़ा ताज्जुब हुआ कि हमें बिना किसी पुलिस हिरासतके शहरमें अपने डेरेपर जाने दिया गया। चार बजे हम अदालतमें लौटे और मजिस्ट्रेटने हमसे जमानतें देनेके लिए कहा, जिससे हमने इनकार कर दिया। इसपर मजिस्ट्रेटने हमें छः महीनेकी सादी कैदको सजा देते हुए कहा: “जनाब, आप-जैसे विचारोंके लोगोंको सजा देनेका काम बड़ा कष्टप्रद है।” इसके बाद उसने हमसे हाथ मिलाये। सुपरिंटेंडेंटने हमसे गले मिलते हुए कहा, “मैं भी इस देशको भलाईके