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लिए आपके कन्धेसे-कन्धा भिड़ाकर काम करना चाहता हूँ।” उसके बाद भी उन्होंने हमें हिरासतमें नहीं लिया। हम मस्जिदमें गये और नमाज पढ़नेके बाद नगरकी जनताके साथ स्टेशन पहुँच गये, जहाँ हमें एक थानेदार और दो सिपाही मिले जो हमें वेल्लोरकी केन्द्रीय जेलमें ले जाने के लिए हमारा इन्तजार कर रहे थे। हम पुलिससे ऐसे बर्तावकी कभी उम्मीद नहीं थी क्योंकि उसने श्री राम-मूर्ति और अन्य लोगोंसे बड़ा कठोर बरताव किया था। हमें इस बातकी बड़ी खुशी हुई है कि हम अपने स्नेही और श्रद्धेय प्रिंसिपल मौलाना मुहम्मद अलीके नक्शे-कदमपर चल सके हैं और हमने अपने आपको इस बातके लिए बड़ा मुबारकबाद दिया है कि फतवा बाँटकर और कराची-प्रस्तावका समर्थन करके सेनाको विद्रोह करनेके लिए उभाड़नेके तथाकथित इल्जामपर सजा पानेवाले पहले लोग हमीं हैं। हमने अपना फर्ज पूरा कर दिया है और आपसे विनती है कि आप हमें अपनी दुआएँ दें। हमारा दिल बड़ा खुश है और परवरदिगार से यही दुआ है कि वह हमें सभी तकलोफों और मुश्किलोंका सामना करनेकी हिम्मत और ताकत दे।”

मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि सबसे ज्यादा बधाई किसे दूँ, इन बहादुर नौजवानोंको, मजिस्ट्रेट और पुलिसको या उस प्रिंसिपलको जिसने इन नौजवानोंका चरित्र बनाया है। ऐसे मासूम लोगोंको जेल भेजनेवाली सरकारके लिए मैं यही कह सकता हूँ कि इस प्रकार वह खुद ऐसे ढंगसे अपनी कब्र खोद रही है जिस ढंगसे कोई असहयोगी भी नहीं खोद सकता।

दस अनमोल कारण

बिहार सरकारके प्रचार विभागने हिन्दुस्तानी में पर्चे निकाले हैं जिनमें विदेशी कपड़ेका बहिष्कार न करने के दस कारण बताये गये हैं। पाठकोंको यह मालूम होना ही चाहिए कि सुधारोंपर अमल किस ढंगसे किया जा रहा है और जनताको किस तरह गुमराह किया जा रहा है। ये कारण इस प्रकार हैं:

१. भारतमें जितना कपड़ा तैयार होता है वह हमारी जरूरतोंके लिए काफी नहीं है।

२. जिन लोगोंको काफी अर्सेसे महीन कपड़े पहननेकी आदत है उन्हें भारतीय सूतसे बने कपड़े पहनने में भारी लगते हैं।

३. भारतीय कपड़ा-मिलें महीन कपड़ा बुननेके लिए विदेशी सूत ही काममें लाती हैं।

४. यदि हम विदेशी कपड़े पहनना छोड़ दें तो हमारी वैसी ही दुर्दशा होगी जैसी सन् १९०५ में स्वदेशी आन्दोलनके फलस्वरूप हुई थी। उस समय भारतीय कपड़ा-मिलोंने दाम बढ़ाकर हमारा सारा धन खींच लिया था। इस प्रकार मिल-मालिक हमें बरबाद करके अपनी तिजोरियाँ भरेंगे।

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