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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

५. जबतक विदेशी कपड़ेका आयात होता रहेगा, भारतीय और विदेशी कपड़ोंमें होड़ बनी रहेगी और इस प्रकार मिल-मालिक दाम बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा सकेंगे।

६. हिन्दुस्तानमें इतनी कपड़ा-मिलें अथवा हाथ-करघे नहीं हैं जो हमारी जरूरत-भरका पूरा कपड़ा तैयार कर सकें।

७. हाथसे सूत कातनेका काम लाभदायक नहीं है, क्योंकि इससे दो आने रोजसे ज्यादाकी आमदनी नहीं हो पाती।

८. हाथ-करघोंसे बहुत थोड़ा कपड़ा बुना जाता है; इसलिए उनसे ज्यादा उत्पादन नहीं किया जा सकता।

९. इस प्रकारके बहिष्कारसे बड़ी अशान्ति और उत्तेजना फैलेगी और हिन्दुस्तानकी तरक्की बहुत ज्यादा हदतक रुक जायेगी।

१०. कपड़ेके दाम बढ़नेसे गरीबोंको बड़ा कष्ट होगा और सारे देशमें असन्तोष फैलेगा।

मुझे आशा है कि लॉर्ड सिन्हाको[१] इन अनमोल कारणोंके बारेमें कोई जानकारी नहीं होगी, लेकिन वे इस जिम्मेदारीसे बच नहीं सकते। मैं यह मानता हूँ कि किसी एक व्यक्तिके लिए मानवीय सामर्थ्यको देखते हुए किसी बड़े प्रान्तके सभी विभागोंके छोटे-छोटे कामोंपर पूरा नियन्त्रण रखना सम्भव नहीं है। लेकिन यही तो वह वजह है कि किसी भी स्वाभिमानी मनुष्यको इस सरकारकी सेवा नहीं करनी चाहिए। यह व्यवस्था तो बनाई ही इसीलिए गई है ताकि विदेशी पूंजीपतियों, विशेष रूपसे लंकाशायरके उत्पादकोंके लाभार्थ भारतका शोषण किया जा सके और विदेशी जुआ हमारे कन्धोंपर कायम रखा जा सके। यदि प्रत्येक विभागमें इस प्रकार स्वार्थ-साधन करनेकी दृष्टिसे काम न किया जाता तो जिस परिपत्रका अनुवाद मैंने ऊपर दिया है उसका जारी किया जाना असम्भव होता। राष्ट्रीय सरकारका अत्यन्त स्वाभाविक कार्य होगा हाथ-करघों और चरखोंकी संख्या बढ़ाना और बाजारोंको हाथ कते सूतके हाथ-बुने कपड़ेसे भर देना। राष्ट्रीय सरकार मिल-मालिकोंको अनुचित रूपसे दाम बढ़ानेसे रोकेगी और इस महान् जन-जागृति और आन्दोलनका लाभ उठाकर इस महान् कुटीर उद्योगके पैर जमा देगी। इन अनमोल कारणोंको गढ़नेवाले मनुष्यको ये बातें नहीं सूझीं कि करोड़ों लोगोंको तो अब भी कपड़ा पहननेको नहीं मिलता, कि कताईका लाभ तो फुर्सतके वक्त करनेके लिए है, कि करोड़ों लोगोंको सूत कातने के लिए कुछ भी नहीं देना पड़ेगा और चूंकि कताई वे स्वयं करेंगे इसीलिए हाथ-कते सूतका बना कपड़ा उन्हें अपेक्षाकृत वैसे ही सस्ता पड़ेगा जैसे होटलके भोजनसे घरका भोजन सस्ता पड़ता है। सरकारके इस परिपत्रसे हमें यही शिक्षा लेनी चाहिए कि हम स्वदेशीके पक्ष में किये जानेवाले अपने कार्योंको बढ़ा दें और उस व्यवस्थाका अन्त करनेमें जरा भी देर न करें जो घुनकी तरह हमारे राष्ट्रके परमावश्यक अंगोंको खाए जा रही है।

  1. सत्येन्द्रप्रसन्न सिन्हा (१८६४-१९२८); बिहार और उड़ीसाके गवर्नर १९२०-२१। वाइसरायकी कार्यकारिणीके प्रथम भारतीय सदस्य। अध्यक्ष, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, १९१५।