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१६६. एक और गोरखा हमला

प्रायः ऐसा मालूम होता है कि कष्ट-सहनमें, अतः स्वराज्यकी प्राप्तिम, बंगाल प्रथम आनेवाला है। हमें चाँदपुरके क्रूर कृत्यकी याद भी अभी ज्योंकी-त्यों बनी हुई है। अब ऐसे ही भयंकर एक अन्य क्रूर कृत्यकी खबर चटगाँवसे आई है। वहाँकी जिला कांग्रेस समिति के मन्त्री बाबू प्रसन्नकुमार सेनके अपने शब्दों में वह इस प्रकार है:

मैं इस पत्रमें आपको चटगाँवकी वर्तमान स्थिति बताना चाहता हूँ। चटगाँव जिला कांग्रेस समितिके सभापति श्रीयुत सेनगुप्त और मन्त्री श्री महिमचन्द्र दास तथा दूसरे १६ सज्जन गत २ जुलाईको गिरफ्तार किये गये थे, उनका अपराध यह था कि वे एक जलूसमें बिना इजाजत शामिल हुए थे। स्थानीय हाकिमोंने जुलूसके पहले पुलिस कानूनकी धारा ३०के अन्तर्गत एक नोटिस जारी किया था। पूर्वोक्त सज्जनोंका जुलूसमें शरीक होना उस नोटिसकी मंशा के खिलाफ माना गया। उनपर भारतीय दण्ड-विधानकी धारा १५१ और पुलिस कानून की धारा ३२ के अन्तर्गत आरोप लगाये गये थे। मुल्जिमोंने अपनी सफाई नहीं दी। फलतः २० अक्तूबर को उनमें से हरएकको तीन-तीन मासकी सख्त कैद की सजा दे दी गई। कस्बेमें यह बात मालूम थी कि इन बन्दियोंको उसी रात अलीपुरकी केन्द्रीय जेलमें ले जाया जायेगा। अतः लोग शामके ४ बजेसे पहले ही जेलके फाटकके पास जमा होने लग गये थे। वाद्य-मंडलियाँ, भजन-मंडलियाँ और संकीर्तन मंडलियाँ भी वहीं आ गई थीं। शामके वक्त सारे शहर में रोशनी की गई और आतिशबाजी छोड़ी गई। लोगोंने यह सब कांग्रेस समितिको सूचनाके बिना ही किया था। ८ बजने के कुछ ही देर बाद कैदी लोग जेलके दरवाजेपर लाये गये और स्टेशनपर जानेके लिए पुलिसकी गाड़ियोंमें सवार कराये गये। उनके पीछे-पीछे वाद्य-मंडलियाँ और भजन-मंडलियोंका जुलूस निकला। जुलूसमें मशालें जल रही थीं और वह अत्यन्त शान्त और व्यवस्थित था।
जलूस ज्यों ही रेलवे स्टेशनके नजदीक पहुँचा, कोई सौ बन्दूकधारी गोरखोंकी टोली, एक स्थानसे जहाँ वह छुपी बैठी थी, बाहर निकली। किसी मनुष्यने, जिसका पता अभीतक नहीं लगा है, लैम्प बुझा दिये और गोरखे लोग ‘मारो, मारो’, ‘लगाओ, लगाओ’, चिल्लाते हुए किसी तरहकी चेतावनी दिये बिना एकदम पूरी खूंख्वारीसे उन बेगुनाह और शान्त लोगोंपर टूट पड़े... पता लगा है कि कोई सौ लोगोंके शरीरोंपर जगह-जगह ऐसे घाव आये जिनमें से खून बह रहा था और कोई तीन सौ लोगोंको ऐसी चोटें लगीं जिनमें बहुत