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पत्र-लेखकोंसे

कहता हूँ कि अगर कार्यकर्त्ता चाहें तो चन्द महीनोंमें इसे सर्वव्यायी बनाया जा सकता है। जरूरत सिर्फ ऐसे विशेषज्ञोंकी है जो इसका संगठन कर सकें। लोग उसके लिए तैयार बैठे हैं, और हाथ-कताईके पक्षमें सबसे बड़ी बात यह है कि यह कोई नया और अनपरखा तरीका नहीं है, बल्कि लोग अभी हाल तक इसका उपयोग करते रहे हैं। अतः, इसे सफलतापूर्वक एक बार फिर घर-घरमें प्रवेश करा देने के लिए युक्ति-पूर्ण प्रयास, ईमानदारी और ऐसे जबरदस्त पैमानेपर सहकारकी आवश्यकता है, जैसा सहकार दुनियाने आजतक नहीं देखा है। और अगर भारतमें यह सहकार आ जाये, तो इस बातसे कौन इनकार कर सकेगा कि भारतने इस एक ही कामसे स्वराज्य पा लिया है?

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३-११-१९२१
 

१६८. पत्र-लेखकोंसे

अवधबिहारी लालजी: मुझे खेद है कि मैं आपका पत्र प्रकाशित नहीं कर सकता क्योंकि ‘यंग इंडिया’ के स्तम्भोंमें हिन्दू धर्मके बारेमें वाद-विवाद आरम्भ करना असम्भव है। हिन्दू धर्म के बारेमें मुझे जो कुछ कहना था वह मैं अपने लेखमें लिख चुका हूँ। यदि आगे समय मिला तो और लिखूँगा। लेकिन उस लेखमें कही गई बातोंके पीछे मंशा यह नहीं था कि दूसरे भी उसे प्रामाणिक मान लें। वह तो मैंने सनातन हिन्दू धर्मकी केवल अपनी परिभाषा देने के विचारसे लिखा था। हो सकता है कि मैंने जो-कुछ लिखा वह बिलकुल गलत हो और प्रत्येक सनातनी उसका खण्डन करे। परन्तु तब भी मुझे यही आशा करनी चाहिए कि मैं अपने विश्वासपर दृढ़ रह सकूँगा। यदि विशाल हिन्दू-बहुमत मेरे विचारोंको अस्वीकार कर दे तो मुझे जातिसे बहिष्कृत बने रहनेमें भी सन्तोष होगा।

जी० एस० राममूर्ति: अस्पृश्यताको कार्यक्रममें दूसरा स्थान नहीं दिया जा सकता। जबतक इस दागको मिटाया नहीं जाता, स्वराज्य एक निरर्थक शब्दमात्र रहेगा। अपना कर्तव्य पूरा करने में कार्यकर्ताओंको सामाजिक बहिष्कार और लोक-घृणातक का स्वागत करना चाहिए। मैं अस्पृश्यता निवारणको स्वराज्य प्राप्तिका और साथ-साथ खिलाफतके सवालके हलका बड़ा सशक्त साधन मानता हूँ। अशुद्ध हिन्दूवाद इस्लामकी शुद्धिमें सहायक नहीं हो सकता।

लाल: प्रार्थना निस्सन्देह राष्ट्रीय पुनरुत्थानमें बड़ी सहायक है। चरखा प्रार्थनामें सहायक होता है। बाधक तो वह कभी नहीं होता। यन्त्रवत्, बिना समझे की जानेवाली प्रार्थना तो व्यर्थ और निकृष्ट होती है, क्योंकि वह धोखेमें रखकर लोगोंको आत्मतुष्ट और निष्क्रिय बना देती है। असहयोग सामूहिक-लोकशिक्षाका साधन है। जनसाधारणसे प्रार्थना करनेके लिए कहने की जरूरत नहीं है। उनकी प्रार्थनाओंमें तो केवल जीवन फूँकनेकी कसर है।