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१७३. भाषण: अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीमें[१]

५ नवम्बर, १९२१

सरकारी नौकरी छोड़ने के सम्बन्धमें पेश किये गये प्रस्तावपर बोलते गांधीने कहा, यद्यपि प्रस्तावमें यह कहा गया है कि प्रत्येक नागरिकको सरकारी नौकरीके सम्बन्धमें सलाह देनेका जन्मसिद्ध अधिकार है, फिर भी कांग्रेस कमेटी कोई ऐसा फरमान जारी नहीं कर रही है कि सभी लोग सेनाकी बैरकोंमें जाकर सैनिकोंको वहाँसे निकल आनेकी सलाह दें। और अगर ऐसा फरमान जारी नहीं किया गया है तो उसका कारण जेलका भय नहीं, बल्कि यह है कि इस समय कांग्रेस नौकरी छोड़नेवाले सभी सैनिकों को आजीविकाकी व्यवस्था करनेमें असमर्थ है। किन्तु हरएक आदमीको पूरी स्वतन्त्रता है कि व्यक्तिगत रूपमें अपनी जिम्मेदारीपर वह बैरकोंमें जाकर सैनिकोंसे फौजी नौकरी छोड़नेके लिए कहे। खुद मैंने सैकड़ों सैनिकोंको नौकरी छोड़ने की सलाह दी है।

[अंग्रेजीसे]
अमृत बाजार पत्रिका, ८-११-१९२१
 

१७४. भाषण: मथुराम[२]

५ नवम्बर, १९२१

श्री गांधीने...अक्तूबरके अन्ततक स्वराज्य प्राप्त करनेके सवालपर बोलते हुए कहा, मैंने ऐसा कभी नहीं कहा कि मैं स्वयं ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दूँगा जिनका लाभ उठाकर आप स्वराज्य प्राप्त कर लेंगे। जो लोग भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके पिछले अधिवेशन में प्रतिनिधि बनकर गये थे, उन्होंने यह प्रतिज्ञा की थी कि कांग्रेस और देशके लोगोंने असहयोगका जो कार्यक्रम निश्चित किया है, उसको वे कार्य-रूप देंगे। उन्होंने अपनी यह प्रतिज्ञा पूरी नहीं की, इसलिए स्वराज्य न मिलनके लिए उन्हें अपने- आपको दोषी मानना चाहिए। अभी देशने यह सिद्ध नहीं किया कि उसमें स्वराज्य पानेकी सामर्थ्य है। त्याग और अनुशासनका वह सोधा-सादा क्रम, जो उन्हें स्वराज्य दिलानेका एकमात्र साधन है, अभीतक पूरा नहीं किया गया है।

 
  1. कमेटीकी यह बैठक दिल्ली में हुई थी।
  2. मथुरामें दिल्ली राजनीतिक सम्मेलनका उद्घाटन करते हुए गांधीजीने यह भाषण किया था। कान्फ्रेंसके अध्यक्ष पं० मोतीलाल नेहरू थे।