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हिन्दुओंका कर्त्तव्य

अब देशके लिए यह और भी अधिक जरूरी हो गया है कि वह शेष कार्यक्रमको इस वर्षकी समाप्तिसे पहले ही पूरा करनेमें अपनी समस्त शक्ति लगा दे। और यदि देश ऐसा कर पाया तो में अपने प्राणोंकी बाजी लगाकर आपको आश्वासन देता हूँ कि यह वर्ष समाप्त होनेके पहले ही हमें स्वराज्य मिल जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ११-११-१९२१
 

१७५. हिन्दुओंका कर्त्तव्य

गोधराके अन्त्यज आश्रमकी ओरसे मुझे निम्नलिखित हृदयद्रावक पत्र [१] मिला उस ओर मैं प्रत्येक भारतीयका ध्यान खींचता हूँ।

इस पत्रको पढ़कर प्रत्येक हिन्दूका सिर शर्म से झुक जाना चाहिए। इस बालकको मार पड़ी, इसके लिए उसके माँ-बाप उत्तरदायी नहीं हैं, हम हैं। हमने अन्त्यजोंका तिरस्कार किया, उन्हें अपना जूठा और सड़ा हुआ अन्न खानेके लिए दिया और यह माना कि हमने पुण्य किया है। हमने उन्हें कमसे-कम वेतन दिया है और उन्हें भीख माँगनेपर विवश किया है। हमने उनसे अपना कचरा न सिर्फ उठवाया, उन्हें अपना कचरा खिलाया भी। अपनी उतारनको उनका शृंगार बनाया। परिणाम यह हुआ कि अब अन्त्यज वर्ग भीख माँगकर खुश होता है, जूठा भोजन पाकर गर्वका अनुभव करता है। सड़ा हुआ अनाज जब उनके घरमें आता है तो उनके बच्चे खुशी नाचते हैं। जिस मालिकके गुलाम अपनी गुलामीमें प्रसन्न होते हैं उसके पापका कोई हिसाब ही नहीं है। सो हालत हिन्दुओंकी हुई है।

जिस बालकको अच्छा बनने के लिए, जूठा भोजन खानेसे इनकार करनेके लिए मार खानी पड़ी वह हमारा ही बालक था। इस लेखको पढ़कर हरेक माँ-बापको विचार करना चाहिए कि उपर्युक्त बालकके स्थानपर अगर उनका अपना लड़का होता तो? और वह बालक कितना पवित्र था! मार खाने के बाद भी उसने माँस खानेसे इनकार किया। ऐसे बालकको अस्पृश्य माननेवालेकी मानसिक दशाका विचार कीजिए। वह स्वराज्यका उपभोग क्या करेगा? वह किसकी रक्षा करेगा?

लेकिन इस समय मैं अन्त्यजेतर हिन्दू माता-पिताओंको अस्पृश्यताके सम्बन्धमें कुछ नहीं कहना चाहता। क्या वे अन्त्यज भाइयोंपर दया भी नहीं करेंगे? क्या उनको सड़ा-गला और जूठा भोजन देना भी शास्त्रोचित है? क्या उन्हें कमसे-कम वेतन देना शास्त्रोचित है?

 
  1. यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है। अन्त्यज आश्रम के एक अध्यापक द्वारा लिखे गये इस पत्र में विद्यार्थियोंकी अपने घरोंमें जो दुर्दशा होती थी उसका वर्णन किया गया था। माता-पिताओंको उनकी सुधरी हुई आदतें अच्छी नहीं लगती थीं और वे उनके साथ दुर्व्यवहार करते थे।
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