पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/४५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४१९
पत्र: महादेव देसाईको

शुद्धि होती हैं। देहको जो अन्न मिलता है उसका बदला मनुष्य मनका काम करके नहीं दे सकता। जब अनाज मिलनेकी अपेक्षा किये बिना मनुष्य मजदूरी करता है तब वह यज्ञ होता है। इस युगमें, इस देशमें शरीर यज्ञ चरखेसे ही सम्भव है। क्योंकि उसीके अभावसे हिन्दुस्तानका शरीर जीर्ण हो गया है। जब हिन्दुस्तानकी आबोहवा बदल जायेगी और हमारी जरूरतें बदल जायेंगी तब हम दूसरा यज्ञ कर सकते हैं। यदि ऐसा हो कि इस देशमें पानी प्राप्त करनेके लिए हमेशा कुआँ खोदना पड़े तो कुआँ खोदनेकी क्रिया कुछ अंशमें यज्ञ बन जायेगी। लेकिन जबतक ऐसी स्थिति कायम है तबतक जिस तरह ब्रह्मचर्य आदि आवश्यक है उसी तरह शरीर-यज्ञ भी आवश्यक है। लेकिन चूँकि वह केवल शरीरका ही धर्म है इसलिए जब शरीर अनशन कर रहा हो तब वह इस यज्ञसे मुक्त रह सकता है [अन्यथा नहीं]। लेकिन जिस तरह मेरे जैसा व्यक्ति–सहज ही अथवा अपने मनको फुसला कर यह मान लेता है कि मैं तो निरन्तर २४ घंटे प्रार्थना ही करता रहता हूँ और उसके लिए एक निश्चित समय निर्धारित नहीं करता उस तरह अगर कोई व्यक्ति शरीर-यज्ञ किये बिना ही यह मानता है कि वह यज्ञ कर रहा है तो वह भूल करता है, क्योंकि प्रार्थना मानसिक या हार्दिक क्रिया है जब कि यह क्रिया तो केवल शरीर द्वारा ही सम्पादित की जा सकती है। हाँ, वह इस क्रियाको निष्ठापूर्वक एकाग्र मनसे न करे और लोगोंको छले, यह एक अलग बात है लेकिन यह क्रिया उसे करनी तो अवश्य पड़ेगी। इतनेमें तुम्हारे इस सम्बन्धमें पूछे गये दोनों प्रश्नोंका उत्तर आ जाता है।

मैंने श्री दासके तारको गलत समझा। छोटानी मियाँके पत्रके बारेमें भी मुझे गलतफहमी हुई। उनमें गलतफहमी पैदा करनेकी जानबूझ कर कोई कोशिश नहीं की गई थी। छोटानी मियाँसे जब मेरी बातचीत हुई उस समय भी उन्होंने मेरी गलत-फहमी दूर करनेकी कोशिश नहीं की। यह सच है कि हमने लम्बी बातचीत नहीं की। लेकिन जो अच्छी तरहसे समझता नहीं है वह भी सत्यका पूरा-पूरा पालन नहीं करता। मैं तो जानता हूँ कि यदि मैं मन, वचन और कर्मसे सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्यका पालन कर सकूँ तो इसी वर्ष स्वराज्य मिल जाये; अथवा हममें से कोई ऐसा हो जाये तो भी; अथवा हम सब लोगोंका तप मिलकर उसके लिए पर्याप्त हो तो भी; मैं अपने सम्बन्धमें ऐसी आशा नहीं छोड़ता। अपनी कोशिशमें तो मैं कोई कसर...।[१]

गुजराती प्रति (एस० एन० ११४२४) की फोटो-नकलसे।

 
  1. यहाँ मूल पत्र कटा-फटा है।