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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है और इसके लिए अभी हजारों आदमियोंको अच्छी तरह सूत कातना जाननेकी जरूर है, जिससे वे अपने-अपने जिलोंमें अच्छे किस्मका सूत कतवा सकें। अतः जो लोग स्वराज्यकी स्थापनाके लिए सविनय अवज्ञा करें उन्हें अवश्य ही सूत कातना जानना चाहिए। गौर कीजिए, उनसे यह नहीं कहा गया है कि आप रोज सूत काता करें। हाँ, अगर वे ऐसा करें तो ‘अधिकस्याधिकं फलम्।’ परन्तु उन्हें सूत―अच्छा कसदार सूत―कातना जरूर आना चाहिए। विरोधके होते हुए भी उस संशोधनका एक बहुत बड़े बहुमतसे नामंजूर किया जाना मेरी दृष्टिमें तो एक शुभ शकुन है। उसे अस्वीकार करने के पक्षमें एक दलील यह पेश की गई थी कि सिख भाई चरखा चलाना एक हीन काम समझते हैं और कपड़ा-बुनाईको नीची निगाहसे देखते हैं। मुझे जरूर यह आशा है कि यह खयाल उस सारी बहादुर जातिके खयालको जाहिर नहीं करता है। जो जाति एक ईमानदारीकी रोजी देनेवाले पेशेको तिरस्कारकी दृष्टिसे देखती है, वह एक ऐसी जाति है जो अपना कदम पतनकी ओर बढ़ा रही है। यदि अबतक सिर्फ औरतें ही सूत कातती रही हैं तो इसका सबब यह है कि उन्हें फुरसत अधिक रहती है, यह नहीं कि वह एक नीचा काम है। इसके पीछे खयाल यह है कि जो शख्स तलवार चलाता है वह चरखा नहीं चलायेगा; किन्तु यह तो सैनिकके व्यवसायका विकृत अर्थ है। जिस तरह सरकारकी नौकरी करनेवाले सैनिक देशकी सेवा नहीं करते, उसी तरह जो तलवारसे अपनी रोजी कमाता है वह भी अपने समाजकी सेवा नहीं करता। तलवार चलाना तो एक अस्वाभाविक व्यवसाय है और सभ्य जाति केवल असाधारण अवसरोंपर अपनी रक्षा-भरके लिए उसका अवलम्बन करती है। दूसरोंको मारनेका धन्धा करके पेट पालनेकी अपेक्षा चरखा चलाकर पेट भरना हर हालतमें ज्यादा मर्दानगीका काम है। औरंगजेब टोपियाँ सीता था। क्या वह कम बहादुर था? सिख भाइयोंके जिस गुणकी हम कद्र करते हैं वह दूसरोंको मारनेकी उनकी सामर्थ्य नहीं है। स्वर्गीय सरदार लछमनसिंहको आनेवाली पीढ़ियाँ ‘वीर’ मानेगी; क्योंकि उन्हें मरनेका मर्म मालूम था। ननकाना साहबके महन्तको आनेवाली पीढ़ियाँ ’खूनी’ कहेंगी। अतः मुझे आशा है कि कोई भी सूत कातनेके कामको हीन मानकर इस सुन्दर जीवनदायिनी कलाको सीखनेसे मुँह नहीं मोड़ेगा।

मिलका कता बनाम हाथकता

हरएक सत्याग्रही तहसील या जिलेको अपना कपड़ा खुद ही तैयार करना चाहिए, इस शर्तपर प्रहारके मूलमें द्वेषके अतिरिक्त कुछ अन्य भी कारण थे, और अगर इस शर्तसे हमारा अभिप्राय यह हो कि हरएक तहसीलको सामूहिक सविनय अवज्ञामें शामिल होना चाहिए तो उस शर्तकी पूर्ति होना असम्भव होगा। किन्तु यह उम्मीद तो कोई भी नहीं करता कि इन बाकी बचे कुछ महीनों में हरएक तहसील सविनय अवज्ञा शुरू करनेके लिए और इसलिए अपनी जरूरतें खुद ही पूरी करनेके लिए तैयार हो सकेगी अथवा हर जिला तैयार हो सकेगा। बस, कुछ इनी-गिनी थोड़ी-सी तहसीलें ही तैयार हो जायें, तो काफी हैं। किन्तु अगर कुछ तहसीलें भी पूरी तरहसे स्वावलम्बी बनकर स्वराज्य लेनेके लिए तैयार न हो सकीं तो इस सालमें स्वराज्य लेना असम्भव ही