पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/४५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

श्री त्यागीका पत्र

मैं समझता था कि श्री त्यागीकी वीरतापर सन्देह प्रकट करते हुए मैंने जो -कुछ लिखा[१] था उससे उत्पन्न विवाद में समाप्त कर चुका हूँ। लेकिन, बन्दीके रूपमें मेरठ जाते हुए उन्होंने मुझे जो पत्र लिखा है उसका अविकल रूपान्तर पाठकोंके समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे बड़ी प्रसन्नता हो रही है:

मैं ‘यंग इंडिया’ का वह अंक नहीं देख सका था जिसमें आपने अपने प्रिय मित्र मौलाना शौकत अलीकी हिमायत की है। भाग्यसे उस समय जेलमें होनेकी वजहसे वह मुझे कुछ देरसे मिला। मैंने यह दुःखद समाचार देखा जिसमें मेरे लिए आपने डरपोक और कायर शब्दोंका प्रयोग किया है। अपने सम्बन्धमें इन विशेषणोंका प्रयोग हुआ देखकर मुझे जितनी पीड़ा हुई है मैं आपसे उसका बयान नहीं कर सकता। मैं अपने मनको यह समझाकर तसल्ली देना चाहता हूँ कि आपने जो-कुछ भी लिखा है वह नेकनीयतीसे ही लिखा है। लेकिन मेरी आत्मा मानती ही नहीं। आपकी राय यह प्रतीत होती है कि थप्पड़ खाने के बाद मुझे अदालतसे बाहर चले जानेकी कोशिश करनी थी और उस कोशिशका फल भोगनेके लिए तैयार रहना था। मैं यह मानता हूँ कि मैं ऐसा कर सकता था। लेकिन यह निश्चित है कि ताकतके नशेमें चूर मजिस्ट्रेट मेरे ऊपर और भी अधिक हिंसाका प्रयोग करता और इस बात बहुत संभावना थी कि अधिक हिंसा देखकर दर्शक मजिस्ट्रेटपर हाथ छोड़ बैठते। उसका परिणाम यह होता कि गोली चल जाती और मेरा संघम टूटनेके कारण मेरे सैकड़ों देशवासी गोलियोंसे मारे जाते। केवल इसी विचारने मुझे रोके रखा। लेकिन फिर भी मैं बिल्कुल ही निष्क्रिय नहीं रहा। क्या आपने वह पत्र अभीतक नहीं देखा है जो इस घटना के बाद ही मैंने मजिस्ट्रेटको लिखा था? हिंसाके प्रयोगके फौरन बाद मजिस्ट्रेटने जब मुझसे यह पूछा कि क्या मुझे कोई बयान देना है, तो मैंने तेज आवाजमें जवाब देते हुए यह कहा था, “मैं ऐसी अन्यायी और कानून न माननेवाली अदालतके सामने बयान देने से इनकार करता हूँ जो खुद मुलजिमपर हाथ छोड़ती है।” क्या यह कथन इस बातका सबूत नहीं है कि में दबा नहीं था? उस समय मैंने जो-कुछ भी किया वह देशको भलाईके लिए ही किया था और मैंने मनमें कभी यह सोचा भी नहीं था कि वह मेरे कार्य से नाखुश होगा। मैं ही जानता हूँ कि थप्पड़ खाने के बाद शान्त रह सकना मेरे लिए कितना मुश्किल था। यदि आप अब भी यह सोचते हैं कि मैंने गलती की तो आप मुझे क्षमा कर दें। देशको मेरा श्रद्धावनत प्रणाम।
 
  1. देखिए “टिप्पणियाँ”, १३-१०-१९२१ का उप-शीर्षक “विपरीत दृश्य” तथा “टिप्पणियाँ” २०-१०-१९२१ का उप-शीर्षक “मजिस्ट्रेटकी क्षमा-याचना” और “अभियुक्तका बयान”।