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इसमें सन्देह नहीं कि श्री त्यागीके जो देशवासी वहाँ मौजूद थे और जिन्होंने उनका आचरण देखा था वे यह समझ गये थे कि उन्होंने जो- कुछ किया है वह देशके हितके लिए ही किया है। चूँकि मुझे यह पता नहीं था कि उन्होंने बादके अपने आचरणसे मजिस्ट्रेटको यह जता दिया था कि उनकी विनय एक वीर पुरुषकी विनय है अतः मैंने एक दूर बैठे आलोचकके रूपमें तथ्योंका जिस रूपमें वे मेरे पास भेजे गये थे उसी रूपमें विश्लेषण कर दिया था; जिससे इस बहादुर देशवासीके प्रति अनचाहे ही घोर अन्याय हो गया है और मैं उनसे हजार-हजार बार माफी माँगता हूँ। मैं यह जानता हूँ कि हर हफ्ते जिन तथ्यों अथवा कार्योंकी मैं सराहना अथवा आलोचना करता हूँ उनका चुनाव में बड़ी सावधानीके साथ करता हूँ। मैं यह भी जानता हूँ कि किसी निर्दोष व्यक्तिपर दोषारोपण और किसी अपात्रकी प्रशंसा करनेसे मैं कितना बचना चाहता हूँ। परन्तु यह बात अब मेरे सामने और भी स्पष्ट होती जा रही है कि ऐसे पत्रकारका काम कितना कठिन होता है जो केवल सच्ची खबरें ही देना चाहता है और सही तरीकेसे लोकमतका निर्माण करना चाहता है।

अहिंसाका व्यवहार

पाठक स्वभावतः अनुमान कर लेंगे कि मैंने श्री त्यागीके सम्बन्धमें जो अनुच्छेद लिखा था उसपर मेरे पास और अधिक आपत्तियाँ अवश्य आई होंगी। इनमें से अधिकांशका उत्तर मैं इस सम्बन्धमें दूसरी बार की गई उस चर्चामें दे चुका हूँ जिसमें मैंने उनसे क्षमा याचना की है।

किन्तु मोतीहारीके एक सज्जनने लिखा है कि वे मेरी आलोचनासे भ्रममें पड़ गये हैं और उनकी समझमें नहीं आता कि अगर ऐसा अवसर उनके सामने उपस्थित हो तो उन्हें क्या करना चाहिए। मैं स्वीकार करता हूँ कि इसके लिए कोई निश्चित नियम बनाना कठिन है। कायरता और शूरता, द्वेष और प्रेम, असत्य और सत्य ये सब हृदयके गुण हैं। सद्गुणका झूठा दिखावा करना आसान होता है और बाहरी मनुष्यके लिए उस गुणको दूसरेके हृदयमें खोज लेना हमेशा ही कठिन होता है। सबसे अधिक निरापद नियम तो यह है कि मनुष्य जो-कुछ कहता है उसीको तबतक सच माना जाये जबतक अन्यथा प्रमाण न मिले। श्री त्यागीके व्यवहारके सम्बन्धमें मुझे अधूरी खबरें मिली थीं और उन्हींके आधारपर मैंने उनके व्यवहारके औचित्य और अनौचित्यका निर्णय किया था। नीचे दी हुई मिसालोंसे यह जाना जा सकता है कि हमें खुद किस तरह बरतना चाहिए। प्रह्लादको रामनाम लेनेकी मनाही कर दी गई थी। जबतक मनाही नहीं की गई थी तबतक वह चुपचाप अपने रास्ते चलता जाता था; परन्तु जब उसे रामनाम लेनेकी मनाही की गई तब उसने उसका प्रतिरोध किया और अत्यन्त कठोर सजाका आह्वान करके हँसते-हँसते उसे सहन किया। डैनियल पहले तो अपने घरके कोनेमें ही पूजा-पाठ किया करता था; परन्तु जब उसे ऐसा करनेसे रोका गया तब उसने झट अपने घरका दरवाजा खोल दिया, खुल्लम-खुल्ला ईश्वरकी पूजा करने लगा और शेरकी गुफामें मेमनेकी तरह डाल दिया गया। हजरत अली अपने विरोधीसे ज्यादा जोरावर थे। उनके विरोधीने उनपर