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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

थूक दिया तो उन्होंने उसका हाथ चूम लिया; बहादुर अली जानते थे कि अगर वे अपने विरोधीको इसका जवाब देंगे तो उनका ऐसा करना मानो, क्रोधके वश हो जाना होगा। परन्तु मैं यह जानता हूँ कि हम इन प्राचीन साधु-संतोंकी श्रेणीमें खड़े नहीं हो सकते क्योंकि हममें न तो उनके जैसा विशुद्ध शौर्य है, न उनकी जैसी पवित्रता और न उनकी जैसी सम्यक् दृष्टि। हम भय और क्रोधको नहीं जीत पाये हैं। हम तो अभी अहिंसाका पाठ पक्का करने और निर्भयता सीखनेका यत्न कर रहे हैं। हमारी अहिंसामें तो अभी मिलावट है। हमारी अहिंसा अभी अधिकांशमें दुर्बलता-मूलक और अल्पांशमें सबलता-मूलक है। हमारे लिए तो सबसे अधिक निरापद नियम यही है कि अपनेको बलवान् बनाने और अपने बलका साक्षात्कार करने के प्रयत्नमें हमें जितने कष्ट सहन पड़ें, उतने कष्ट सहें। अतएव जब कोई मजिस्ट्रेट मुझे थप्पड़ लगाये तब मुझे ऐसा बरताव करना चाहिए जिससे उसे मुझे दूसरा थप्पड़ लगाना पड़े। हाँ, यह बात जरूरी है कि मैं उसे पहले थप्पड़के लिए अपनी तरफसे कोई कारण न दूँ। यदि मैंने बदतमीजी की हो तो माफी माँग लूँ, गुस्ताखी की हो तो नम्र हो जाऊँ और गाली दी हो तो शान्त हो जाऊँ। अदालतमें तो मुझे मुनासिब तरीकेसे ही बरतना चाहिए। कहने की जरूरत नहीं कि मैं कभी तो मुनासिब तरीकेसे पेश आऊँ और कभी ना-मुनासिब तरीकेसे, यह नहीं हो सकता। अदालतमें हमारा वही तर्ज-तरीका अच्छा हो सकता है जो स्वाभाविक हो। अतएव अगर हमें भरसक जल्दी किला सर करना हो तो अपने कामोंमें हमसे जो कुछ भूल हो वह अहिंसाकी ही तरफ होनी चाहिए।

नशाबन्दीका काम अपराध है!

एक मित्रने नीचे लिखी टिप्पणी भेजी है जिससे पता चलता है कि जनता के प्रति कर्त्तव्य के सम्बन्धमें अधिकारियोंकी धारणा कैसी है:

सरकारने...मुकदमोंका जो सिलसिला-सा चला दिया है वह हमारी बढ़ती हुई राष्ट्रीय शक्तिका...प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करता है। हम ज्यों-ज्यों प्रगतिके मार्गपर अग्रसर हो रहे हैं, त्यों-त्यों दमन भी बढ़ता जा रहा है।...अबतक देशके किसी भी भागमें केवल नशाबन्दीका काम करने के आरोपपर एक भी मुकदमा नहीं चलाया गया था। अब इसका सौभाग्य बिहारको प्राप्त हुआ है। सरकारके पापी स्वरूपका गिधौरके महाराजा बहादुरके भतीजे कुँवर कालिकाप्रसाद सिंहके खिलाफ चलाये गये मुकदमेसे अधिक अच्छा उदाहरण दूसरा नहीं मिल सकता। वे जमानत देने से इनकार करके एक सालके लिए जेल चले गये हैं। उनके अभियोग पत्रमें कहा...गया था:
चूँकि पुलिसकी ३ अक्तूबर, १९२१को सूचनासे यह प्रतीत होता है कि तुम कालिकाप्रसाद सिंह उर्फ हीराजी पुत्र महुलीगढ़के राव महेश्वरी प्रसाद सिंह, थाना जमुई,...असहयोग आन्दोलनके नेता हो और तुम्हारा मुख्य उद्देश्य आबकारीके अधीन आनेवाली वस्तुओंकी खरीद-फरोख्त रोकना है और चूँकि