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टिप्पणियाँ

 

तुम इस उद्देश्यकी प्राप्तिके अपने प्रयासमें आबकारीवाली वस्तुओंकी दूकानोंके सामने धरना देनेके लिए दूसरे लोगोंको बाहरसे...बुला रहे हो और इस काममें लगा रहे हो और चूँकि―तुम्हारे व्यक्तिगत आचरणके कारण शान्ति और सार्वजनिक व्यवस्था भंग होने की आशंका है... इसलिए मैं तुमको इस नोटिस द्वारा जाब्ता फौजदारीको दफा १०७के अधीन हुक्म देता हूँ कि तुम १९-१०-२१को मेरे सामने इसका कारण बताओ कि तुमसे एक वर्षतक शान्ति कायम रखने के लिए १००० रु० का मुचलका क्यों न माँगा जाये और ५००-५०० रु०को दो जमानतें क्यों न ली जायें।

इसपर कुछ भी टिप्पणी करना व्यर्थ है। कुँवर साहबने अदालतमें बड़ा ही जोरदार वक्तव्य दिया जिसमें डराने-धमकाने के आरोपका खण्डन करते हुए उलटे सरकारके बारेमें यह कहा गया था कि हिंसाके सब कार्य कानून और व्यवस्थाके तथाकथित रक्षकों द्वारा ही किये गये हैं।

क्या खून-खराबी आवश्यक है?

एक सज्जन लिखते हैं:

“क्या आप अपने हृदय में यह विश्वास नहीं रखते कि स्वराज्य अन्ततः बिना खून-खराबी किये कभी प्राप्त नहीं हो सकता? क्या यह अहिंसात्मक आन्दोलन वर्तमान समयके अनुकूल महज ऐसा उपाय नहीं है, जिससे लोगोंको आगेकी मारकाट और सशस्त्र क्रान्तिको अवस्थाके लिए संगठित और तैयार किया जा सके?”

प्रश्न बिल्कुल सीधा-सादा है। इससे जाहिर होता है कि अब भी कुछ लोग वर्तमान आन्दोलनकी सत्यतामें विश्वास नहीं करते। दुनियामें ऐसा कोई सबब नहीं है जो मुझे ऐसा कहने से रोक सकता हो कि अहिंसा हिंसाकी तैयारीके लिए है। जब मैंने राज्यके कानूनोंके खिलाफ कितने ही गुनाह किये हैं, तब मुझे ऐसा कहने में हिचकिचाने की क्या जरूरत है कि वर्तमान आन्दोलन तो हिंसात्मक कार्योंकी पेशबन्दी है? सच बात तो यह है कि अकेला मैं ही निःशस्त्र...रक्तहीन...क्रान्तिको पूर्णतः सम्भव मानता हूँ सो नहीं, बल्कि कितने ही दूसरे लोग भी हिन्दुस्तानको आजाद करने के लिए ‘अहिंसा’ में पूर्ण विश्वास करते हैं। अली-भाई जो बात कहते हैं वही उनके दिलमें होती है और जो बात उनके दिलमें होती है उसीको वे कहते हैं। वे शरीरबलके उपयोगको अर्थात् किसी हालतमें हिंसाको, जायज मानते हैं; लेकिन उनका यह विश्वास है कि हिन्दुस्तानकी परिस्थितिको देखते हुए यहाँ शरीरबलके उपयोगकी आवश्यकता नहीं है। जब हम “एकता और अनुशासन” प्राप्त कर लेंगे तब हम तीस करोड़ लोग, एक लाख अंग्रेजोंके विरुद्ध हिंसा करना अपने गौरवके प्रतिकूल और नामर्दानगीका काम समझेंगे। हमारे मनमें अभीतक जो बेकार क्रोधकी भावना बनी हुई है, उसका कारण यह है कि हममें धोखे और दहशतके मौकोंपर विचारकी