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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सम्बद्धता, चित्तकी शान्ति और उदारता कायम नहीं रहती। और मैंने जो यह कह दिया है कि जब हिंसा भारतका धर्म हो जायेगी तब मैं हिमायलमें जाकर शरण लूँगा, उसका कारण यही है कि मैं ‘अहिंसा’ का पूरी तरह कायल हूँ और मानता हूँ कि ‘हिंसा’ भारतके लिए विनाशकारी है।

क्या खादी चन्दरोजा है?

ये ही सज्जन पूछते ह:

जब आप कार्यक्रम के दूसरे भागोंको हाथ में ले लेंगे और स्वदेशी हल-चलकी ओर आपका ध्यान कम हो जायेगा, तब क्या खादीकी कद्र कम न हो जायेगी और लोग फिर महीन कपड़ोंको न पहनने लग जायेंगे? जब विद्यार्थियोंको स्कूलों और कालेजोंसे उठा लेनेकी आँधी चली थी तब सरकारी स्कूलों और कालेजोंको बड़ा धक्का पहुँचा था। परन्तु अब फिर झुंडके-झुंड विद्यार्थी उन्हीं स्कूल-कालेजोंमें घुस रहे हैं। इस उदाहरणसे भी क्या पूर्वोक्त अनुमान नहीं निकाला जा सकता?

इन सज्जनने मिसाल अच्छी नहीं ढूंढ़ी। शिक्षा-संस्थाओंके बहिष्कारकी हलचलसे सरकारी स्कूलों और कॉलेजोंकी प्रतिष्ठाको जो धक्का पहुँचा है उससे वे चेते ही नहीं हैं। हाँ, जिन्होंने महज आवेशमें आकर बहिष्कार किया था वे फिर अपने पहले स्थानोंपर पहुँच गये हैं। परन्तु जरा सर आशुतोष मुकर्जीके अश्रुपातपर तो नजर डालिए, जो उन्होंने बंगालके कालेजोंकी हानिपर किया है। पत्र-प्रेषकको शायद यह खबर न होगी कि इस हलचलका असर आज भी काम कर रहा है। परन्तु शिक्षा-संस्थाओं के त्यागके आन्दोलनका सम्बन्ध तो अल्पसंख्यक लोगोंसे ही था और फिर वह आन्दोलन अस्थायी-सा भी था। लेकिन स्वदेशीका सम्बन्ध तो प्रत्येक स्त्री-पुरुष और बालकसे है और यह है भी स्थायी। स्वराज्य प्राप्त होनेपर स्वदेशीका त्याग नहीं किया जा सकता; और स्वराज्य तो स्वदेशीके बिना असम्भव ही है। फिर विदेशी महीन कपड़े पहनना महँगा पड़ता है। अतः कुछ लोग यद्यपि केवल दिखावेके लिए ही स्वदेशी कपड़ेका इस्तेमाल करते हैं और अन्तमें उनके फिसल जानेका डर है, मैं इस बातको मानता हूँ, फिर भी बहुत बड़ी संख्या तो पक्के तौरपर स्वदेशीको अपनाये ही रहेगी। स्वदेशी केवल साधन ही नहीं है। यह तो साधन और साध्य दोनों है।

मेरी गिरफ्तारीका असर

पत्र-लेखकका तीसरा प्रश्न है:

क्या आप यह नहीं मानते कि सरकार आपको गिरफ्तार करनेमें हमारी नैतिक विजयके कारण नहीं हिचकिचाती है, बल्कि इसलिए हिचकिचाती है कि उसे यह डर है कि आपकी गिरफ्तारीसे देश-भरमें जनसमूह उत्तेजित हो जायेगा और खून-खराबी कर बैठेगा? और क्या आपका यह विश्वास नहीं है कि अगर