पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/४६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१७९. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी

गत ४ नवम्बरको दिल्लीमें वर्तमान अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी आखिरी बार बैठक हुई।[१] दिल्लीके प्रसिद्ध हकीम अजमलखाँकी देखरेखमें सारा प्रबन्ध किया गया था। उनकी तबीयत खराब है और उनको कुछ समयतक आराम करनेकी सख्त जरूरत है। लेकिन वे इस समय आराम करना नहीं चाहते। उनका विशाल भवन और डाक्टर अन्सारीका मकान अच्छी-खासी धर्मशाला हो रहे हैं; हिन्दू और मुसलमान सब मेहमानोंके ठहरनेका इन्तजाम उन्हीं में किया गया है। हिन्दुओंके धार्मिक विचारोंका पूरा खयाल रखा जाता है। जो लोग मुसलमानके घरमें पानी भी नहीं पीना चाहते, उनको अलहदा मकान दिये गये हैं। यहाँ दिल्लीमें हिन्दू-मुसलमान एकतापर पूरा अमल होता दिखाई देता है। यहाँके हिन्दू हकीमजीको कामिल तौरपर और कृतज्ञता-पूर्वक अपना नेता मानते हैं, यहाँतक कि वे अपने धार्मिक हितोंको भी उनको सौंपने में नहीं हिचकते।

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी जनताकी संसद है, जो हर साल चुनी जाती है। उसका महत्व और प्रातिनिधिक स्वरूप वर्ष-प्रतिवर्ष बढ़ता ही गया है; और आज तो वह उन तमाम बालिग लोगोंकी प्रवक्ता हो गई है, जो चाहे किसी मजहबके पाबन्द हों, या किसी दलसे ताल्लुक रखते हों; परन्तु जो सिर्फ चार आने दे सकते हों, जो कांग्रेसका ध्येय-भर स्वीकार करते हों और जिन्होंने अपना नाम कांग्रेसके रजिस्टरमें दर्ज करा लिया हो। प्रतिनिधियोंमें दरअसल हिन्दू, मुसलमान, सिख और ईसाई लोग प्राय: शायद अपनी जनसंख्या के अनुपातसे ही हैं। उनमें पारसी और यहूदी लोग भी हैं या नहीं, सो मैं नहीं जानता। उनमें स्त्री-प्रतिनिधियोंकी संख्या भी अच्छी है और ‘पंचम’ प्रतिनिधि भी हैं। अगर किसी समाजके लोगों के

प्रतिनिधि कम हों तो इसमें दोष उस समाजका ही है। तमाम प्रतिनिधि अवैतनिक हैं। वे अपने ही खर्चसे अधिवेशनोंमें शरीक होते हैं और भोजन और निवासका खर्च भी खुद ही उठाते हैं। यह एक अच्छी प्रथा अस्तित्वमें आ गई है कि आमन्त्रक शहर ही प्रतिनिधियोंका अतिथिके रूप में स्वागत-सत्कार करते हैं। यह उनके निवासियोंकी उदारताका लक्षण है; परन्तु कांग्रेसके नियमोंके अनुसार वे इसके लिए बँधे नहीं है। अधिकांश निर्वाचित प्रतिनिधि तीसरे दरजेमें सफर करते हैं और मामूली सुविधाओंसे सन्तोष कर लेते हैं। इस जन-संसदका भवन था बस एक काम-चलाऊ शामियाना और सजावटका सामान था कुछ पेड़-पौधे। हाँ, कुर्सियाँ और मेजें लगाई गई थीं; परन्तु मैं समझता हूँ, वे इसलिए लगाई गई थीं कि जहाँ पण्डाल था वहाँ धूल उड़ती थी; कुर्सियों और मेजोंके बिना उससे बचाव करने और काफी सफाई रखने में कठिनाई होती। सभापतिकी मेजपर पीला रंगा हुआ खादीका कपड़ा

  1. देखिए “भाषण: सविनय अवज्ञापर”, ४-११-१९२१।