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अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी

मेजपोशका काम दे रहा था। प्रायः सब प्रतिनिधि―क्या स्त्री और क्या पुरुष―मोटी खादीके कपड़े पहने हुए थे; और कुछ इनेगिने लोग, आजकल जिसे बेजवाड़ाकी महीन खादी कहते हैं, उसके कपड़े पहने थे। पोशाकें सीधी-सादी और हिन्दुस्तानी थीं। इन सब बातोंकी सविस्तार चर्चा मैंने इसलिए की है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, बहुतेरे लोगोंकी दृष्टिमें, भावी स्वराज्य-संसदका नमूना है। यह हिन्दुस्तानकी सच्ची हालतके अनुरूप ही है। इससे भारतभूमिकी दरिद्रता, सादगी और उसकी आबोहवाकी जरूरतोंका थोड़ा-बहुत आभास मिलता है।

अब, इसके साथ जरा शिमला और नई दिल्लीके झूठे दिखावे, आडम्बर और फिजूल-खर्चीका मुकाबला करें।

जैसा बाहर वैसा ही भीतर। राष्ट्रका यह अत्यन्त महत्वपूर्ण काम बहुत ही व्यवस्थित और यथोचित रीतिसे बारह घंटोंमें समाप्त किया गया। कोई भी ऐसी बात नहीं की गई या करने दी गई जिसकी प्रायः पूरी छान-बीन न कर ली गई हो। कार्यकारिणी समिति और सभापतिके मतभेदसे सम्बन्धित प्रस्तावपर पूर्ण शान्तिसे विचार किया गया। कांग्रेस महासमितिने, जो अपने अधिकारोंकी रक्षाके विषयमें सावधान है, कार्यकारिणी समितिके इस निर्णयकी पुष्टि की कि स्वीकृत नियमकी व्याख्या करना सभापतिकी अपेक्षा उसका अधिकार है। फिर भी उसने प्रस्तावमें ऐसी कोई बात नहीं रहने दी जिससे दिमाग लड़ानेपर भी वह सभापति महोदयके प्रति अशिष्टतापूर्ण मालूम हो।

किन्तु इस अधिवेशनका मुख्य प्रस्ताव था सविनय अवज्ञाके सम्बन्धमें, जो यहाँ दिया जाता है:

चूँकि राष्ट्रके इस निश्चयकी पूर्तिके लिए कि “हम इस सालके समाप्त होने से पहले स्वराज्यकी स्थापना कर लेंगे”―अब एक महीनेसे कुछ ही अधिक समय बाकी रहा है, और चूँकि, अली-भाइयों और अन्य कांग्रेस नेताओंकी गिरपतारी और सजाके मौकोंपर राष्ट्रने पूर्ण अहिंसाका पालन करके अनुकरणीय आत्मसंयमकी क्षमताका परिचय दिया है, और चूँकि अब राष्ट्रको यह वांछनीय मालूम होता है कि वह अधिक कष्टसहन और स्वराज्य-प्राप्तिके योग्य नियम-पालनकी क्षमताका परिचय दे, अतः अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी प्रत्येक प्रान्तको यह अधिकार देती है कि वह अपनी जिम्मेदारीपर, प्रान्तीय समिति जिस ढंगसे अधिकसे-अधिक उपयुक्त समझे उस ढंगसे सविनय अवज्ञा करे, जिसमें लगान न देना भी शामिल है।
१. व्यक्तिगत सविनय अवज्ञाकी अवस्थामें, प्रत्येक मनुष्यको सूत कातनेका ज्ञान होना चाहिए और कार्यक्रमके अनुसार पूरे तौरपर अपने-अपने कर्तव्योंका पालन करना चाहिए अर्थात् ऐसा प्रत्येक मनुष्य विदेशी कपड़ोंका इस्तेमाल बिल्कुल छोड़ चुका हो और केवल हाथका बुना कपड़ा पहनता हो, हिन्दू-मुस्लिम एकताको तथा भारतको भिन्न-भिन्न मतावलम्बिनी दूसरी जातियोंकी एकताको ‘अटल सिद्धान्त’की तरह मानता हो, खिलाफत और पंजाबके अन्यायोंके निरा-
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