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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

करण और स्वराज्यको प्राप्तिके लिए अहिंसाको पूर्ण आवश्यक मानता हो और अगर वह हिन्दू हो तो उसके निजी व्यवहारसे यह प्रकट होता हो कि वह छुआछूतको राष्ट्रीयतापर एक कलंक समझता हो।
२. सामूहिक सविनय अवज्ञाको अवस्थामें, एक जिला या तहसील एक ‘घटक’ समझा जाना चाहिए और उसके अधिकांश निवासी ऐसे होने चाहिए जो पूर्ण स्वदेशीका पालन करते हों, उसी जिले या तहसीलमें हाथके कते सूतसे करघोंपर बुने कपड़े पहनते हों और असहयोगकी दूसरी तमाम बातोंके माननेवाले हों और उनपर अमल करते हों।
यह शर्त है कि कानून-भंग करनेवाला मनुष्य सार्वजनिक चन्देकी रकमसे निर्वाह करनेकी आशा न रखेगा और सजा पानेवाले व्यक्तियोंके परिवारके लोग रुई धुनकर, सूत कातकर, कपड़ा बुनकर तथा दूसरे किसी साधनसे अपना निर्वाह करेंगे।
इसके अतिरिक्त यह भी व्यवस्था की जाती है कि यदि कोई प्रान्तीय समिति दरख्वास्त करे तो कार्यकारिणी समितिको यह अधिकार है कि वह उसे अपना इत्मीनान कर लेनेपर सविनय अवज्ञा भंगकी किसी शर्तसे मुक्त कर दे।

जो लोग सविनय अवज्ञाके लिए बहुत आतुर थे उन्होंने संशोधनोंका तांता बाँध दिया। उन्होंने तरमीमोंकी ताईद बड़ी चतुराईसे की। फिर भी उनके भाषण बहुत ही मुख्तसिर थे। पूर्ण वादविवादके बाद हरएक संशोधन नामंजूर कर दिया गया। वादविवाद करनेवालोंमें मौलाना हसरत मोहानी मुख्य थे। वे सविनय अवज्ञाके लिए बहुत अधीर थे। इससे वे उन कसौटियोंका मर्म नहीं समझ सके, जो भावी कानून-भंग करनेवाले के लिए रखी गई थीं। सिख प्रतिनिधियोंके कहनेसे सिर्फ एक परिवर्धन किया गया। वे अपने विशेष अधिकारोंका बहुत खयाल रखते हैं। ऐसी अवस्थामें अगर हिन्दू-मुस्लिम एकताकी रक्षा की जाती है तो पंजाबमें हिन्दू-मुस्लिम-सिख एकतापर जरूर ही जोर दिया जाना चाहिए। तब दूसरे लोगोंको कहना लाजिम था कि “फिर और दूसरी जातियोंका भी नाम क्यों न दिया जाये?” फल यह हुआ कि “भारतकी भिन्न-भिन्न धर्मावलम्बिनी दूसरी जातियोंकी एकता” का भी उल्लेख किया गया। यह संशोधन अच्छा है; क्योंकि इससे यह जाहिर होता है कि हिन्दू-मुस्लिम एकता कोई डरावनी बात नहीं है, बल्कि सब जातियोंकी एकताका प्रत्यक्ष चिह्न है।

इस प्रकार यद्यपि समितिमें पूर्ण मतैक्य रहा है, तथापि इससे यह समझना गलत होगा कि उसमें बाधा या विरोध था ही नहीं। महाराष्ट्र-दल एक सामर्थ्यवान और प्रशिक्षित दल है। उसने इस कार्यक्रमको अपने विश्वासके कारण उतना स्वीकार नहीं किया है जितना कांग्रेसके प्रति अपनी भक्तिके और बहुमत निर्णयके नियमके कारण। उसको इस कार्यक्रममें पूर्ण विश्वास नहीं है; फिर भी वह इसकी आजमाइश कर रहा है। वह हलकी-हलकी बाधाएँ उपस्थित करके अपनी मौजूदगीका अनुभव कराता है। परन्तु उसकी देशभक्ति इतनी जाग्रत है कि वह इन बाधाओंको कार्यनाशकी सीमातक नहीं