पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/४६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४३५
महत्त्वपूर्ण प्रश्न

पहुँचने देता। श्रीयुत अभ्यंकर[१] अपनी तीव्र प्रहारकारी वक्तृता द्वारा उसकी किलेबन्दी करते हैं; श्रीयुत अणे[२] अपने शान्त तर्कोंसे उसकी पुष्टि करते हैं; और श्रीयुत जमना दास मेहता [३] तो इस दलमें बड़े मौजी जीव हैं। वे अपनी विवाद-पटुता और बाधक हथकंडोंको परिष्कृत करनेके लिए समितिका प्रभावकारी उपयोग करते हैं। समिति उनकी बातोंपर संजीदगीसे विचार नहीं करती और वे भी इस बातको स्पष्ट कर देते हैं कि वे समितिसे इसकी अपेक्षा नहीं रखते। उनकी बातपर सब लोग हँस पड़ते हैं और वे भी उनके साथ खुलकर हँसते हैं। कार्यारम्भके समय यह प्रश्न उठा कि कार्यकारिणी समितिका कोई सदस्य तैयार न हो तो दूसरे किसको सभापति बनाया जाये। तब उन्होंने खुद ही अपना नाम सभापति पदके लिए प्रस्तुत किया। इससे कार्रवाई रोचक बन गई। वे कार्यकारिणी समितिके तमाम सदस्योंको माननीय मानते हैं; और उनके मानका माप यह है कि उनकी रायमें वे लोग उन अधिकारोंको भी अनुचित रीतिसे निरन्तर हथियानेका प्रयत्न करते हैं, जो उन्हें प्राप्त नहीं हैं।[४] परन्तु इससे पाठक यह खयाल कदापि न करें कि ये सब बातें किसी बुरे भावसे की जाती हैं। मैंने किसी सभा-समाजमें लोगोंको इतनी अच्छी तरह पेश आते हुए और हास्य-विनोद करते हुए नहीं देखा, मैं महाराष्ट्र-दलको एक ऐसा दल मानता हूँ जिसे पाकर प्रत्येक राष्ट्रको गर्व होना चाहिए। मैंने जो इस दलका उल्लेख किया है वह वस्तुतः अपनी इस दलीलको मजबूत करनेके लिए कि कांग्रेस महासमितिमें ऐसे सज्जन हैं जो अपने इरादोंको अच्छी तरहसे समझते हैं और जिन्होंने इस बातका दृढ़ संकल्प कर लिया है कि भारतमाताको स्वतन्त्र कराने के प्रयत्नमें वे अपनी सेवाओंका संसारको अच्छा परिचय देंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १०-११-१९२१

१८०. महत्त्वपूर्ण प्रश्न

हम अगले कुछ सप्ताहोंमें ही भारतके किसी-न-किसी भागमें सविनय अवज्ञाके कार्यक्रमपर पूरा अमल होता देखेंगे। व्यक्तिगत अवज्ञाके उदाहरणोंसे तो देश परिचित हो चुका है। पूर्ण सविनय अवज्ञाको “बगावत” कहना चाहिए; परन्तु वह ऐसी बगावत है जिसमें “हिंसा” या मारकाट नहीं है। एक पक्का सविनय अवज्ञाकारी व्यक्ति राजकी सत्ताकी पूर्ण उपेक्षा करता है। वह बागी हो जाता है और राज्यके तमाम नीति-विरुद्ध कानूनोंको न माननेका दावा करता है। इस तरह, उदाहरणार्थ, वह कर देने से इनकार कर सकता है, वह अपने दैनिक व्यवहारोंमें राज्यकी सत्ता मानने से

 
  1. नागपुरके एम० वी० अभयंकर।
  2. बरारके मा० श्री० अणे।
  3. १८८४-१९५५; अ० भा० कांग्रेस कमेटीके सदस्य, १९२१-३१।
  4. इस सम्बन्ध में श्री मेहताके विरोध के लिए देखिए “एक प्रतिवाद”, १-१२-१९२१।