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महत्त्वपूर्ण प्रश्न

सेनामें बदला लेनेकी भावनासे मुक्त होने के कारण रोषका अभाव होता है अथवा होना चाहिए, इसलिए उसके थोड़ेसे-थोड़े सिपाही भी काफी होते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि सिर्फ एक―अकेला ही ‘पूर्ण’ सविनय प्रतिरोध करनेवाला मनुष्य अन्याय के मुकाबलेमें न्यायकी ओरसे युद्ध करके विजय प्राप्त करनेके लिए काफी होता है।

इसलिए, यद्यपि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने प्रान्तोंकी समितियोंको खुद उन्हींकी जिम्मेदारीपर सविनय अवज्ञा करनेकी सत्ता दे दी है, तथापि मैं आशा करता हूँ कि वे ‘जिम्मेदारी’ शब्दका पूरा ध्यान रखेंगी और काफी सोचे-समझे बिना सविनय अवज्ञा शुरू न करेंगी। हरएक शर्तका पालन अवश्य पूरी तरह होना चाहिए। हिन्दू-मुस्लिम-एकता, अहिंसा, स्वदेशी और छुआछूतको दूर करने के उल्लेखका अर्थ यह है कि वे अभी हमारे राष्ट्रीय जीवनके अभिन्न अंग नहीं हो पाये हैं। अगर अब भी किसी व्यक्ति या समुदायको हिन्दू-मुसलमान एकताके विषयमें कुछ खटका बाकी रहा हो, अगर उसे अब भी इसमें कुछ शक बाकी हो कि हमारे इस तीन-सूत्री ध्येयकी सिद्धिके लिए अहिंसा आवश्यक है, अगर अबतक उसने स्वदेशीका पूर्ण पालन न किया हो और अगर उस समुदायके हिन्दुओंमें अब भी छुआछूतका जहर बाकी हो तो वह व्यक्ति या समुदाय सविनय अवज्ञा शुरू करने के लिए तैयार नहीं है। हाँ, निस्सन्देह, सबसे अच्छा यह होगा कि जबतक उसका प्रयोग एक क्षेत्रमें हो रहा है तबतक दूसरे क्षेत्र उसे गौरसे देखें और रुके रहें। अगर हम उसे सेनाकी भाषामें कहें तो जो पलटनें देखती और रुकी रहती हैं, वे भी लड़ाईमें उतना ही सक्रिय सहयोग करती हैं जितना कि वे पलटनें करती हैं जो वास्तवमें लड़ती हैं। जब एक जगह यह प्रयोग चल रहा है, तब उसके साथ ही व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा करनेका मौका उसी समय आ सकता है, जब सरकार चुपचाप स्वदेशीका प्रचार करने में बाधा डाले। इसी तरह यदि किसी होशियार सूत कातनेवालेको यह आदेश दिया जाये कि वह कताईके संगठनका या शिक्षणका कार्य न करे तो उसे तुरन्त ऐसी आज्ञाका अनादर करना चाहिए और जेल चले जाना चाहिए। परन्तु दूसरी समस्त बातोंमें, जहाँतक मैं मौजूदा हालत में सोच सकता हूँ, दूसरे प्रान्तोंके लिए यह सबसे अच्छा होगा कि जबतक एक प्रान्त सोच-समझ कर उसमें अग्रसर हो रहा है और राज्यके ज्यादासे-ज्यादा जितने नीति-विरुद्ध कानूनोंको तोड़ सकता है उन्हें विचार-पूर्वक तोड़ रहा है, तबतक वे ठीक-ठीक तमाम आज्ञाओं और हिदायतोंको मानते रहें। यह कहनेकी तो आवश्यकता ही नहीं है कि उस समय अगर दूसरे किसी भी भागमें जरा भी हिंसाका उद्रेक हुआ―लोगोंकी तरफसे जरा भी खून-खराबी हुई―तो इससे उस प्रयोगकी निस्सन्देह बड़ी ही हानि होगी और शायद वह बन्द भी हो जाये। प्रयोग-कर्ता प्रान्तके लोग चाहे जेल भेजे जायें, उन पर गोलियाँ चलाई जायें या वे हाकिमों द्वारा तरह-तरहसे सताये जायें, परन्तु दूसरे प्रान्तोंके लोगोंसे ऐसी अवस्थामें भी बिलकुल अचल और अक्षुब्ध रहनेकी उम्मीद की जाती है। हम उनसे यह जरूर उम्मीद करते हैं कि वे हर कल्पनीय स्थितिमें शोभनीय व्यवहार करेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १०-११-१९२१