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१८१. ब्रह्मचर्यका पालन कैसे किया जाये?

एक स्वयंसेवकने अत्यन्त करुणाजनक पत्र लिखा है। वह कहता है कि बहुत प्रयत्न करने के बावजूद वह ब्रह्मचर्यका पालन नहीं कर पाता। उसे स्वप्नदोष होता है और इससे कभी-कभी उसे आत्महत्या करने की इच्छा होती है। इसमें मुझे घबराहट दिखाई देती है। जबतक मनुष्य जानबूझकर अपराध नहीं करता; पुरुष स्त्रीकी ओर अथवा स्त्री पुरुषकी ओर बुरी निगाहसे नहीं देखती तबतक निराशाका कोई कारण नहीं है। जाग्रत अवस्थामें मनपर पूरी तरहसे नियन्त्रण प्राप्त करने के बाद निद्रावस्थाके लिए ईश्वरपर भरोसा करके सोना चाहिए। सोते समय दोष हो तो समझना कि अभी मनकी वासनाओंका क्षय नहीं हुआ है। “निराहारीके विषय शान्त हो जाते हैं, लेकिन रस नहीं जाता, रस तो आत्मदर्शन के बाद ही जाता है।”[१] यह वचन अनुभव-जनित है और अक्षरशः सत्य है । आत्माकी मूढ़ दशामें ही पाप सम्भव है―आत्मज्योति प्रकट होने के बाद पापका सर्वथा क्षय हो जाता है। ब्रह्मचर्यका सतत पालन करनेवालेको निम्नलिखित नियमका पालन करना चाहिए:

१. अल्पाहार करे।

२. आहारमें भी मसालेदार, बहुत घीवाले या तले हुए पदार्थोंका, मिठाइयोंका तथा माँसादिका त्याग करना चाहिए।

३. मदिरापान तो किया ही नहीं जा सकता; लेकिन अनेक प्रकारके पेय, उदाहरण के रूपमें चाय, कहवा और काढ़ा भी, दवाके रूपमें ही पिये जा सकते हैं।

४. गुह्य भागोंको हमेशा दो-तीन बार ठण्डे पानीसे धोये और उनपर ठण्डा पानी उंडेले।

५. भारी आहार कभी न ले।

६. रातके भोजनका त्याग करे।

७. भूखे पेट सोये, इसलिए अन्तिम भोजन हमेशा हलका करे।

८. श्रृंगार रसकी पुस्तकें न पढे, वैसी बातें न करे और न सुने।

९. स्त्री-मात्रको बहन समान समझे; कभी उनकी ओर लोभी नजरोंसे न देखे। यह सुन्दर है, यह सुन्दर नहीं है―ऐसा विचारतक भी न करे। सौन्दर्य आकृतिमें अथवा रंगमें ही होता तो हम पुतलोंको देखकर ही आँखोंकी तृप्ति कर लेते। सौन्दर्य सद्गुणोंमें है और सद्गुण इन्द्रियोंकी तृप्तिकी वस्तु नहीं हैं। अपनी माँ अथवा बहनको जो सुन्दर या असुन्दर मानता है वह पापी बनता है, ऐसा सोचकर विकारोंपर विजय प्राप्त करे।

१०. स्त्रीके साथ कभी एकान्तवास न करेंगें।

 
  1. भगवद्गीता, २-५९।