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११. शरीर और मनको हमेशा सत्कार्य में लगाये रखे। चरखे के निरन्तर उपयोगको मैं इसमें बहुत सहायक मानता हूँ। अलबत्ता, यह मेरा अनुमान है; अभी अनुभवसे नहीं लिख सकता। कहनेका तात्पर्य यह है कि अन्य शारीरिक क्रियाओंकी अपेक्षा चरखा संयमका पालन करनेमें अधिक मदद करता है, ऐसा मेरा अनुमान है।

१२. आत्मशुद्धिके लिए निरन्तर ईश-स्मरण करे। आस्तिक मानता है कि ईश्वर अन्तर्यामी है, नींदमें भी हमारी चेष्टाएँ देखता है। इसलिए हमें चौबीसों घंटे सावधान रहना चाहिए। कोई भी मानसिक अथवा शारीरिक क्रिया करते समय ईश्वरके नामको भूलना नहीं चाहिए। उसका नाम सारे पापोंको हरनेवाला है। थोड़ी मेहनत करने के बाद प्रत्येक इस बातका अनुभव कर सकेगा कि कोई भी काम या विचार करते ईश-स्मरण करना सम्भव है। एक समयमें व्यक्ति एक ही बातपर विचार कर सकता है, यह नियम ईश-स्मरणपर लागू नहीं होता, क्योंकि ईश्वरका स्मरण करना आत्माका स्वाभाविक गुण है। दूसरे विचार तो उपाधि रूप हैं। जो व्यक्ति यह मानता है कि सब-कुछ ईश्वर करता है और उसीके ध्यान में लीन रहता है उसे सोचने अथवा करने के लिए क्या रह जाता है? वह स्वयं मिटकर ईश्वरके हाथका साधन-मात्र रह जाता है। ऐसे ईश-स्मरण के बिना मन, कर्म और वचनसे मैं शुद्ध ब्रह्मचर्यका पालन करनेकी बातको असम्भव मानता हूँ।

जो इतने नियमोंका पालन करेगा वह अवश्य जितेन्द्रिय बनेगा। और इतना प्रयत्न करनेवाले व्यक्तिको निश्चिन्त रहना चाहिए और स्वप्नदोषसे तनिक भी नहीं घबराना चाहिए। स्वप्नदोषको असावधानीकी स्थिति माने और उसकी अधिक चौकसी करे, परन्तु घबराये बिलकुल नहीं। लेकिन हाँ, अगर उसकी दृष्टि मलिन हो और वह दूसरे व्यक्तिकी तुष्टिको मलिन करनेके लिए ललचाये तो उसे अवश्य आत्महत्या करनी चाहिए। परस्त्रीगमनकी अपेक्षा आत्महत्या करना अधिक श्रेयस्कर है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १०-११-१९२१

१८२. टिप्पणियाँ

एक सलाहकार

एक सलाहकार लिखते हैं कि एक बार ‘इंडियन सोशल रिफॉर्मर’ में यह टीका प्रकाशित हुई थी कि “गांधी अपनी अन्तरात्माकी आवाजको बहुत दृढ़तासे पकड़े रखते हैं और फिर दूसरे महापुरुष उनके बारेमें क्या सोचते हैं, इसका विचारतक नहीं करते और उसे जानना भी नहीं चाहते।" इसके बाद सलाहकार महोदय लिखते हैं कि अगर उपर्युक्त टीका सही है तो यह दुःखकी बात है। इसके बाद वे अंग्रेज लेखकोंके इस कथनको उद्धृत करते हैं कि प्रत्येक सेवकको, उसके आलोचक अथवा विरोधी क्या कहते हैं, यह देखना चाहिए और मुझे सलाह देते हैं कि मुझे विदुषी एनी बेसेंट[१] आदिकी

  1. एनी बेसेंट (१८४७-१९३३); थियोसोंफिकल सोसाइटीको अध्यक्षा; बनारसके केन्द्रीय हिन्दू कालेजकी संस्थापिका; कांग्रेस अध्यक्ष, १९१७।