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भाषण: लाहौरकी सार्वजनिक सभामें

माननेकी अपेक्षा जेल जाना पसन्द किया। सविनय कानून भंग करनेवाला जुर्माना नहीं भरता क्योंकि वह तो उसीका कार्य कहा जायेगा। जेल जाना उसका कार्य नहीं; वह; स्वेच्छासे जेल नहीं जाता, अत्याचारी उसे बलात् जेलमें डालता है।

भय-जनित प्रश्न

यही पत्र लिखनेवाला फिर पूछता है “समझिए कि असहयोगके कारण अंग्रेजोंने हमारे साथ सम्बन्ध तोड़ लिया तो फिर हम कैसे विश्वास कर लें कि अफगानिस्तान आदि देश हिन्दुस्तानपर चढ़ाई नहीं करेंगे? और यदि ऐसा हुआ तो क्या हमारी हालत वही नहीं हो जायेगी जो थी?”

कुछेक लोगोंके दिलोंमें यह प्रश्न उठता है और यदि बहुत ज्यादा लोग यह सोचें तो हमें स्वराज्य नहीं मिल सकता। क्योंकि अफगानिस्तान और जापान आदिका भय रखनेवाले तो अंग्रेज-राज्यको अवश्य पसन्द करेंगे। ऐसे भयका निराकरण करनेका नाम ही स्वराज्य है। यदि हम अंग्रेजोंको निकाल बाहर करने जितनी शक्ति प्राप्त कर लें तो क्या वह अफगानिस्तान अथवा जापानका सामना करनेके लिए पर्याप्त नहीं है? जबतक हम स्वदेशीका पूर्ण रूपसे पालन नहीं करते तबतक हम भयभीत बने ही रहेंगे। स्वदेशीका पालन पतिव्रता स्त्रीके व्रतके समान है। जिस तरह पतिव्रता स्त्रीपर कोई उद्धत पुरुष कुदृष्टि नहीं डाल सकता उसी तरह स्वयं काते और बुने वस्त्रोंसे सज्जित भारत-मातापर भी कोई कुदृष्टि नहीं डाल सकता। जापान स्वावलम्बी भारतका क्या बिगाड़ सकेगा? जिस हिन्दुस्तानके हिन्दू और मुसलमान एक हो गये हैं उस हिन्दुस्तानका अफगानिस्तान क्या कर सकता है? जिसको स्वदेशीका सेवन नहीं करना है उसे जापानका भय है, जिसे मुसलमानकी सज्जनतापर सन्देह है वह अफगानसे डरता है। स्वराज्यवादीको सब प्रकारके भयसे छुटकारा पाना है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १०-११-१९२१
 

१८३. भाषण: लाहौरकी सार्वजनिक सभामें

१० नवम्बर, १९२१

महात्मा गाँधीन प्रस्तावका समर्थन करते हुए एक भाषण दिया। उन्होंने कहा कि अली-बन्धुओं तथा अन्य लोगोंके लिए बधाईके प्रस्तावका समर्थन करते हुए मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि अगर आप अली-बन्धुओं और दूसरे असहयोगियोंको इसी वर्ष जेलसे छुटकारा दिलाना चाहते हैं तो आपको अहिंसात्मक असहयोगका कार्यक्रम पूरा करनेकी कोशिश करनी चाहिए। अली-बन्धुओंने एक सन्देश भेजकर सूचित किया है कि वे तो अब सरकारके आदेशसे ही मुक्त होना चाहते हैं। अगर आप खिलाफत तथा पंजाबके साथ किये गये अन्यायोंका परिशोधन कराना चाहते हैं तो उसका एक ही