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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

युग निरन्तर बदलता रहता है। यह युग बुनकरोंका युग है। यदि आप इस धन्धेको अपना लें तो आप अपने पैरोंपर खड़े रह सकते हैं। यह न समझें कि यह काम करनेसे काम न चलेगा। आज बुनकर तो दुगुनी मजूरी कमा सकते हैं। फिर आपमें से जिनको अपने घर जाना हो वे जायें; आपका किराया पूरा कर दिया जायेगा। आप वहाँ जानेके बाद अपनी छोटीसी जमीनमें खेती करें और साथ ही चरखा चलायें। इसके अतिरिक्त आप अपने गाँवमें अपनी पसन्दका कोई और काम भी करें और स्वावलम्बी बनें। यदि आप सब लोग चटगाँववासी ही हों तो आप यहींपर ऊपर बताये गये अनुसार खेती और बुनाईका धन्धा करें। और इस प्रकार चटगाँवको भारतकी नाक बनाएँ। ऐसा करना कोई कठिन काम भी नहीं है। ईश्वर बहुत ही दयालु और न्यायकारी है। सूत कातना तीन दिनमें सीखा जा सकता है। रुई पींजनेकी क्रिया भी सुगम है। और मनुष्य कपड़ा बुननेका काम नियमित रूपसे सीखनेपर एक महीने में सीख लेता है। हाँ, यह जरूर है कि रेल विभागके कर्मचारियोंको रिश्वत लेने और चोरी करनेकी लत पड़ जाती है। यदि आप मेहनत किये बिना अपना पेट भरना चाहेंगे तो आप अवश्य ही दूसरे दिन मुझे यह लिखेंगे कि "हमसे बुनाईका काम नहीं होता।” किन्तु यदि आप मेहनत करेंगे, दिनमें बारह घंटे काम करेंगे तो आप मुझे एक महीने में ही यह अवश्य लिख देंगे कि "आपने हमें जो उपाय सुझाया है, उससे हम स्वावलम्बी बन गये हैं। अब हमें ईश्वरके सिवा अन्य किसीकी परवाह नहीं है।" और बारह घंटे काम करना कोई कठिन बात नहीं है। मैं बूढ़ा हो गया हूँ, अब मुझमें कोई शक्ति नहीं रही है; फिर भी बारह घंटे काम कर सकता हूँ। तब आप जवान लोग क्यों नहीं कर सकते ? यदि आप मेहनत करेंगे, विचारपूर्वक जीवन बितायेंगे, तो आप ईश्वरको पहचान जायेंगे। क्योंकि जिस मनुष्यका चरित्र अच्छा नहीं है, जो शराब पीता है और जो व्यभिचार करता है वह बारह घंटे काम कर ही नहीं सकता। आप कांग्रेससे गुजारेके लिए पैसा नहीं मांग सकते; आपने हड़ताल की है तो आप उससे चरखा माँग सकते हैं। आप अपनी रोटी चरखा चलाकर कमा सकते हैं। आप चरखेका सहारा लेकर अपनी हड़ताल जारी रखें. दुःखी लोगोंको दिलासा दें और जबतक यह राक्षसी राज्य न झुके तबतक आपमें से एक भी मनुष्य कामपर वापस न जाये।

मैं आज कमसे-कम तीस सालसे मजदूरोंके जीवनमें ओतप्रोत हूँ। मैं जब वकालत करता था तब भी मजदूरोंके बहुतसे मुकदमे हाथमें लेता था। मैं उनके साथ रहता, उनके साथ चलता-फिरता, उन्हीं के साथ सोता और खाता-पीता था। मैंने आजतक कितनी ही हड़तालें चलाई हैं। मैं अपने आपको हड़ताल शास्त्री मानता हूँ। किन्तु मैंने जितनी हड़तालें हाथमें ली हैं उन सबमें ईश्वरकी कृपासे सफलता पाई है। इसका कारण यही है कि हर हड़ताल में मैंने मजदूरों को खुद अपने पैरोंपर खड़ा होना सिखाया है, मैंने पैसा उगाहकर हड़तालियोंका उदर-पोषण कभी नहीं किया। हाथों-पावोंसे पूरा कोई स्वस्थ मनुष्य दूसरोंसे पैसा लेकर अपना पेट क्यों भरे ? मेरी नौकरी चली जाये या मेरा व्यापार डूब जाये तो मैं अपने भाई या मित्रसे रुपया माँगने न जाऊँगा। मुझे रोग हो जाये, मैं अपंग हो जाऊँ तभी मैं अपने भाईके सामने अपना हाथ फैलाऊँगा।