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भाषण : चटगाँवमें, रेल कर्मचारियोंके समक्ष

दक्षिण आफ्रिकामें जब चालीस हजार मजदूरोंने हड़ताल की, तब मैंने तुरन्त श्री गोखले[१] को तार दिया, 'कोई चिन्ता न करें। भारतसे रुपया इकट्ठा करके यहाँ भेजनेकी कतई जरूरत नहीं है।' और जब पैसा न था तब बहुत अच्छी तरह काम चलता था। जब पैसा आने लगा तभी कठिनाइयाँ सामने आईं। मजदूरोंको जिसकी जरूरत थी वह मिल गया। हड़ताल छः महीने भी नहीं चलानी पड़ी। हड़ताल समझौता होने पर कुछ हफ्तों में ही बन्द हो गई। हड़तालियोंको दिनमें एक रोटी और एक औंस खाँड दी जाती थी। इतने अल्प भोजनपर वे बीस-बीस मीलकी मंजिल तय करते थे और साथ में स्त्री-बच्चे भी होते थे।

यह हड़ताल बहुत बड़ी थी। उसके आगे आपकी हड़ताल कुछ भी नहीं है। उसमें बहुत से लोग मार खाते थे और मुँहतक न खोलते थे। यों दस हजार लोग जेलमें गये थे पर किसीने मुँहसे एक शब्द भी नहीं निकाला था। इनमें लम्बे-तगड़े पठान भी थे। एक बार कोयला खदानमें काम करनेवाला एक पठान मेरे पास आया और मुझे अपनी सूजी हुई और घायल पीठ दिखा कर बोला : “यह देखो; तनिक भी हिले-डुले बिना मैंने यह सब मार खाई है। इस जालिमने मेरी खाल उतारने में कोई कसर नहीं रखी है; किन्तु फक्त इसलिए मैंने यह मार खाई है कि मैं आपके सामने खुदाके नामपर कसम ले चुका था। नहीं तो उसकी क्या मजाल थी कि वह मुझे मारता। उस जैसेको तो मैं कुचल देता।"

मैंने उससे कहा, तु खरा बहादुर है। और उस हड़तालमें ऐसा एक ही पठान न था; बहुतसे थे। उसमें चोरी और खून वगैरा जुर्ममें जेल गये हुए लोग भी थे। फिर भी उनके मनमें एक ही बात थी कि "उन्होंने कसम जो ली है; मर जायेंगे पर उसपर कायम रहेंगे।" ये सभी लोग बहादुर थे। मैं चाहता हूँ कि आप सब भी ऐसे बहादुर बनें। मैं आप सभीसे फिर कहता हूँ कि आप कांग्रेसकी ओर न ताकें। ईश्वरने दाँत दिये हैं तो वह चबैना भी देगा। बंगालकी जमीन कितनी उपजाऊ है। यहाँ इतनी वर्षा होती है। प्रकृतिकी आपपर पूरी कृपा है। यहाँके लोग भूखों कैसे मरेंगे ? यहाँके लोग किसीके गुलाम कैसे हो सकते हैं? उन्हें तो बिलकुल स्वतन्त्र होना चाहिए। वे निश्चय कर लें तो आज समस्त भारतको स्वराज्य दिला सकते हैं। मुझे तो तब शर्म आती है जब खुलनामें अकाल पड़ता है और उसके निवारणार्थ बम्बईके व्यापारियोंसे रुपया माँगा जाता है और जब वह रुपया मिलता है तब खुलनाके लोगोंका लंघन खुलता है।

अब हम यह सोचें कि हमें करना क्या चाहिए। या तो आप अपने-अपने घरोंको चले जायें और वहाँ आजीविकाके दूसरे साधन खोज लें अथवा अपनी कोई संस्था बना लें। यदि आप अपने-अपने घर जाना चाहें तो कांग्रेस समितिका कर्त्तव्य है कि वह आपको किराया दे। किन्तु मेरी सलाह तो यह है कि आप अपनी संस्था बना लें। एक स्वराज्यवादीके नाते आपको मेरी यह सलाह है कि आप पींजें, कातें और बुनें।

  1. गोपाल कृष्ण गोखले (१८६६ - १९१५); शिक्षाशास्त्री और राजनीतिज्ञ; भारत सेवक समाज (सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) के संस्थापक।