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झूठे विज्ञापन

"स्वदेशी" के सम्बन्ध में झूठे विज्ञापनोंकी शिकायतें बराबर मेरे पास आ रही हैं| सत्याग्रहाश्रमके व्यवस्थापक-- जिन्होंने इन सुधरे हुए और ईजाद किये हुए कहे जानेवाले लगभग तमाम चरखों और करघों आदिको आजमा देखा है -- लिखते हैं कि अभी हाल में मुझे कलकत्तेसे एक विज्ञापन मिला है, जिसने पिछले सब विज्ञापनोंके कान काट लिए हैं। उनकी राय है कि अभीतक कोई ऐसा चरखा नहीं पाया गया जो सादगी, आराम और अधिक सूत कताईमें पुराने चरखेसे बढ़कर हो। वे तमाम सूत कातनेवालोंको चेतावनी देते हैं कि आप किसी नये ढंगके चरखे के लिए रुपया बरबाद न करें। वे तमाम कांग्रेस कमिटियोंको सलाह देते हैं कि वे अपने-अपने क्षेत्र में ऐसे सारे विज्ञापनों की जाँच करें और ऐसी हरएक कलको कमसे कम एक महीनातक आजमा कर देखें और फिर उसके बारेमें अपनी राय घोषित करें। जैसे-जैसे स्वदेशीकी जड़ जमती जाती है वैसे-वैसे बनावटी आविष्कार भी लोगोंके सामने आये बिना न रहेंगे। इसलिए ऐसे तमाम मामलोंमें कांग्रेस कमेटियोंको जरूर रहनुमा होना चाहिए।

एक तूणी सज्जन लिखते हैं कि बम्बईके कुछ दुकानदार महीन कपड़ा खरीदनेके लिए आन्ध्र देश गये हैं। और मेरे खबरदार कर देनेपर भी, कुछ सौदागरोंने बेजवाड़ासे विलायती सूतका कपड़ा भेजा। मैं तमाम खरीदारोंको होशियार किये देता हूँ कि वे ऐसे कपड़ेसे दूर रहें। यहाँ स्वदेशी कपड़ेका सारा स्टॉक खतम हो चुका है। इससे क्या नसीहत लेनी चाहिए सो साफ जाहिर है। वह नसीहत यह है कि "महीन कपड़ोंसे बचो।" महीन हाथ-कता सूत बहुतायतसे मिलना मुश्किल है और इसलिए कांग्रेस के कार्यकर्त्ताओंके लिए सबसे अच्छी बात यही है कि वे महीन खादीसे अपने को बचायें। जैसा कि श्रीमती सरोजिनी नायडूने[१] फरूखाबादमें कहा है, विलायती कपड़ा पहनने की बनिस्बत तो पेड़के पत्तोंसे अपना बदन ढक लेना अच्छा है। जिनके दिलमें यह भावना दिनरात जगमगाती रहती है वे अभी नफीस और महीन कपड़े के खतरनाक जाल में न फँसे। वह समय जल्द ही आयेगा जब कि हमें बुने जाने लायक हाथकते महीन सूतकी कमी न रहेगी।

एक सामयिक प्रकाशन

पटना के डा० सैयद महमूदने खिलाफत और इंग्लैंडपर अपनी पुस्तिका प्रकाशित करके खिलाफतकी सेवा की है। यह पढ़ने में सुगम है और व्यस्त व्यक्ति के सामने भी खिलाफतका लगभग समूचा पक्ष पेश करती है। डा० महमूदने अपनी सभी बातोंकी पुष्टिमें प्रचुर उद्धरण देनेकी सावधानी बरती है। उन्होंने अंग्रेज मन्त्रियोंके भाषणों और लेखोंसे ही उद्धरण लेकर उनका विश्वासघात सिद्ध किया है। उन्हें यह प्रमाणित करनेमें कोई कठिनाई नहीं हुई कि इंग्लैंड जब टर्कीका मित्र समझा जाता था तब भी उसकी यह मित्रता विवशताजन्य थी, क्योंकि रूस उसका शत्रु था। इंग्लैंड और टर्कीके सम्बन्धका इतिहास टर्की के हितों के विरुद्ध गुप्त सन्धियों और विश्वासघातसे भरा हुआ है, जब कि वीर

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  1. १८७९-१९४९; प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और कवयित्री; अ० भा० कांग्रेसकी अध्यक्ष, १९१५; उत्तर प्रदेशकी राज्यपाल।