पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिल बुरे भावोंसे भरे हुए हैं। इसका कारण यह है कि वे कमजोर हैं और अपनी कमजोरीको निकालनेका उपाय बिल्कुल नहीं जानते। उनके इसी दुर्भावको मैं मनुष्यों परसे हटाकर वस्तुओंकी ओर ले जा रहा हूँ।

विदेशी कपड़े के प्रेम या मोहके ही कारण यहाँ विदेशियोंका आधिपत्य हुआ, मुफलिसी छा गई और इससे भी बुरा और क्या होगा कि कितने ही घरोंकी लाज भी जाती रही। पाठक, शायद, यह बात न जानते होंगे कि थोड़े ही दिन पहले, काठियावाड़ के सैकड़ों "अछूत" बुनकर बम्बईकी नगरपालिकामें मेहतरोंका काम करने लगे क्योंकि उनका बुनाईका धन्धा खत्म हो गया था। और अब इन लोगोंका जीवन इतना दूभर हो गया है कि बहुतेरे लोग तो अपने बाल-बच्चोंसे हाथ धो बैठे हैं और उनका स्वास्थ्य और चरित्र, दोनों ही चौपट हो चुका है। कुछ लोग तो इतने बेबस हो गये हैं कि अपनी बेटियों और बीवियोंतक की लाजको अपनी आँखों जाते हुए देखते हैं, पर कुछ कर नहीं सकते। पाठक शायद नहीं जानते होंगे कि गुजरात में इस श्रेणीकी बहुतसी औरतें, कोई घर धन्धा न होनेके कारण, आम सड़कोंपर काम करने के लिए लाचार हुई हैं और वहाँ वे, किसी न किसी ढंगके दबाव से अपनी इज्जतको बेचनेपर मजबूर होती हैं। पाठक यह भी न जानते होंगे कि पंजाब के स्वाभिमानी बुनकरोंको जब कोई पेशा न रहा तो वे -- बहुत बरसोंकी बात नहीं है -- फौज में भरती हो गये और अपने अफसरोंके हुक्मपर स्वाभिमानी और बेगुनाह अरबोंका संहार करनेके लिए एक हथियार बन गये। और यह उन्हें अपने देशके लिए नहीं, बल्कि रोटियोंके लिए करना पड़ा। और अब इन बहके हुए भद्वैतियोंको समझाकर उनसे यह खूनी पेशा छुड़ाना कठिन मालूम होता है। जो पेशा किसी जमानेमें इज्जत और कारीगरीका माना जाता था आज वही उन्हें बदनामीवाला दिखाई देता है। जब ढाकाके बुननेवाले जुलाहे विश्वविख्यात शबनम नामकी मलमल बनाते थे तब तो वे "बदनाम" नहीं समझे जाते थे।

तो, क्या अब यह कोई ताज्जुबकी बात है जो मैं विदेशी कपड़े को छूना पाप समझू ? क्या उस मनुष्यके लिए, जिसका मेदा बहुत कमजोर पड़ गया है, भारी भोजन करना "पाप" नहीं होगा ? क्या ऐसे खानेको उसे नष्ट नहीं कर देना चाहिए ? अथवा फेंक न देना चाहिए? अगर मेरा लड़का बीमार पड़ा हो और उसे भारी भोजन करना बिल्कुल मना हो, परन्तु फिर भी वह उसे खाना चाहे तो मैं जानता हूँ कि उस समय मुझे उस अन्नका क्या करना चाहिए। उसकी हवस छुड़ाने के लिए, उसे हजम करने की ताकत होते हुए भी, मैं खुद उसे न खाऊँगा और उसके सामने ही उसको नष्ट कर दूँगा, जिससे कि वह खाना पाप है यह बात उसे अच्छी तरह जँच जाये।

यदि विदेशी कपड़ेका जलाना, ऊँची-ऊँची नैतिक दृष्टिसे उचित ठहरता हो तो स्वदेशी कपड़े की कीमत बढ़ जानेकी सम्भावनासे हमें घबराना नहीं चाहिए। विदेशी कपड़ों की यह होली स्वदेशी कपड़ेकी उत्पत्तिको उत्तेजना देनेका अधिकसे-अधिक गतिपूर्ण उपाय है। अपनी सारी शक्ति लगाकर एक प्रचण्ड प्रयत्नके द्वारा और इस आवश्यक विध्वंसात्मक कार्यको तेजीसे पूरा करके हमें हिन्दुस्तानको उसकी मोह-निद्रासे जगाना