पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। उनके सम्बन्ध में इससे अधिक कुछ मानना मुझे तो पापरूप ही लगता है। विपिनबाबू[१] अथवा विजयराघवाचार्य[२] के मनमें अवश्य बहुत-कुछ हो सकता है। रमाकान्तको मैं बालक मानता हूँ। ऐसा जान पड़ता है कि उसने स्वतन्त्र विचार रखनेका दावा करनेकी खातिर ही मेरा विरोध किया है। हमें उसका विचार ही नहीं करना चाहिए और पत्रकारके रूपमें मधुर टीका करने के कामको करते रहना चाहिए।...[३] के सम्बन्ध में कवि और मालवीयजीके विचारोंको अवश्य बताते रहो। यह काम 'यंग इंडिया' में अधिक नहीं हो सकता लेकिन 'इंडिपेंडेंट' में आरामसे और बखूबी हो सकता है।

इन्दुके लिए हाथसे कते सूतके हार सहज ही बनाये जा सकते हैं।

तुम काफी पिओ तो इससे मुझे तनिक भी बुरा नहीं लगेगा। मेरे लिए यह ज्यादा जरूरी है कि तुम अपने स्वास्थ्यको बनाये रखो। अलबत्ता, मेरा ऐसा अनुभव है कि सामान्य रूपसे काफी की जरूरत नहीं होती, और मैं ऐसा मानता भी हूँ। जब मैं काफी पीता था, मुझे कोई फायदा नजर नहीं आया। अब नहीं पीता, इससे भार तो कम हुआ ही है, और बला टली सो अलग।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० ११४१८) की फोटो-नकलसे।


२०. मोपला उत्पात

मलाबार में एकाएक जो अशान्ति फैल गई है उसकी थोड़ी-बहुत खबरें, यहाँ मेरे पास सुदूर उत्तर-पूर्व में भी, आ पहुँची हैं। यह लेख मैं जन्माष्टमी के दिन रेलगाड़ी में बैठे हुए लिख रहा हूँ। पाठकोंके हाथमें यह लेख नौ दिन बाद पहुँचेगा; तबतक और भी बातें प्रकट हो जायेंगी। तो भी जो खबरें अबतक मालूम हुई हैं उनसे निकलनेवाले सिद्धान्तोंका विचार तो, अगले समाचारोंके अनुसार तथ्योंमें कमीबेशी होनेपर भी, हम कर सकते हैं।

मोपला लोग मुसलमान हैं। उनकी नसोंमें अरब लोगोंका खून बहता है। कहते हैं कि उनके बाप-दादे, कितने ही वर्षों पहले, अरबिस्तानसे आकर मलाबारमें बस गये थे। उनका मिजाज बड़ा तेज है। वे बहुत जल्दी आवेशमें आ जाते हैं; जरा-सी बात बिगड़कर लड़ पड़ते हैं। उनके हाथों अनेक हत्याएँ हुई हैं। उनको वशमें करने के लिए, बहुत बरस पहले, एक खास कानून भी बनाया गया था। उनकी आबादी दस लाख गिनी जाती है। यह जाति अपढ़ किन्तु बहादुर है। मौतका तो उन्हें डर ही नहीं। जब लड़ाईपर निकलते हैं तब पीछे पाँव न हटाने की कसम खाकर ही निकलते

  1. विपिनचन्द्र पाल (१८५८ - १९३२ ); बंगालके शिक्षाशास्त्री, पत्रकार, वक्ता और राजनीतिक नेता।
  2. १८५२ - १९४३; अध्यक्ष, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, १९२०।
  3. साधन-सूत्र में यहाँ एक शब्द स्पष्ट नहीं है।