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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मिल ही जायेगा। विघ्न तो मैं बहुतेरे देखता हूँ; परन्तु अपना कर्त्तव्य भी मुझे बिलकुल साफ दिखाई देता है। हमें अधिक संयम रखना है, अधिक शुद्ध होना है, अधिक जागृत या सचेत रहना है, अधिक कुरबानियाँ करना है। दोनों शक्तियोंकी दिशाऐं जुदी-जुदी हैं। इसलिए जब हमारी शान्तिका बल अधिक होगा तभी हमारी गाड़ी आगे चल सकती है। एक गाड़ी में चार बैल हों और उनमें से एक मर जाये या छूट निकले तो उसका बोझ बाकीके तीन बैलोंको उठाना पड़ता है। परन्तु अगर चारमें से एक छूटे या मरे तो नहीं, पर विद्रोही हो जाये -- उलटे रास्ते जाने लगे, तो फिर बाकीके तीन बैलोंका काम केवल इतना ही नहीं रहेगा कि एकका बोझा और उठायें, उन्हें उस उलटा चलनेवाले के उपद्रवको रोकनेकी शक्ति भी प्राप्त करनी होगी। इस तरह सच्चे असहयोगियोंका बोझ अब और भी बढ़ गया है।

मैं तो यह बराबर देखता हूँ कि हमारे रास्तेमें भारी-भारी विघ्न सरकारकी तरफसे नहीं, बल्कि खुद हमारी ही तरफसे आते हैं। हमारी उलटी गति, हमारी नासमझी, हमारे काममें जितनी अधिक रुकावट डालती है, उतनी सरकारकी उलटी गति हमें नहीं रोकती। यदि सरकारकी विपरीत गतिको हम समझ लें तो हम आगे बढ़ें। परन्तु, स्वयं अपनी कमजोरी और उलटी गतिके कारण हम पीछे हटेंगे। सच है, आत्मा ही हमारा शत्रु और हमारा मित्र भी है। इस शत्रुको जीतनेमें ही शान्तिमय असहयोगकी पूरी विजय है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ४-९-१९२१


२१. अधिवेशनकी तैयारी

बहुत वर्षोंके बाद अहमदाबादमें कांग्रेसकी बैठक फिरसे होनेवाली है। फिर इस बारका अधिवेशन भी दूसरे अधिवेशनोंसे बिलकुल अलग प्रकारका होगा। नया संविधान, नई आशा, नया युग ! कारण, अगर कांग्रेस अपने सम्बन्धमें किये हुए प्रस्तावके अनुसार चलेगी -- अर्थात् अगर जनता अपनी की हुई प्रतिज्ञाका पालन करेगी तो हम लोगोंको यहाँ इसलिए इकट्ठा होना है कि हम स्वराज्यका उत्सव मनायें। परन्तु ऐसा सुन्दर अवसर कहीं इन बाकीके चार महीनों में आ सकता है ? बरसोंकी बेड़ियां कहीं एक क्षणमें टूटती हैं ? इसका जवाब इस शंकाके अन्दर ही है। अगर किसी बीमारको अच्छा होना हो तो जरूर कुछ वक्त लगता है; पर बीमारको अगर अपने मर्जका सिर्फ वहम ही हो, और मर्ज अगर जाना है तो क्षण मात्रमें ही चला जायेगा। जब वह जायेगा तो एक क्षण में ही जायेगा। दस साल पहले जिसने बेड़ियाँ पहनी हों उसकी बेड़ियाँ टूटने का भी जब वक्त आता है तब क्या तोड़नेकी क्रियामें बहुत कुछ वक्त लगता है ? बस, बात सिर्फ हमारे भयके भागनेकी है। किसीकी आँखोंपर पट्टी चढ़ा दी गई और वह अन्धा बना दिया गया। तब, पट्टीके खुलते ही वह तुरन्त देखने न लगेगा