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अधिवेशनकी तैयारी

तो और क्या होगा ? हाँ, अगर बन्धनको तोड़ने की शर्तें कठिन होतीं तो कुछ ज्यादा सोचनेकी जरूरत होती। पर यहाँ तो सिर्फ तीन अनिवार्य शर्तों हैं -- (१) हिन्दू-मुसलमानोंकी एकता, (२) शान्तिका पालन और (३) स्वदेशीका व्यवहार|

पहली दो शर्तोंको पालनेके लिए सिर्फ दिलके परिवर्तनकी जरूरत है। इसमें न तो इतनी पैसेकी जरूरत है, न भारी तालीम की और न तलवारकी अर्थात् पशुबलकी। परन्तु यह लेख में यह बतानेके लिए नहीं लिख रहा हूँ कि स्वराज्य इस सालमें मिलेगा ही, अथवा वह किस तरह मिल सकता है। इस लेखका हेतु तो व्यावहारिक दृष्टिसे इस बातपर विचार करना है कि कांग्रेसके आगामी अधिवेशनको सफल बनानेके लिए अहमदाबादको और गुजरातको क्या करना चाहिए।

गुजरातका कर्त्तव्य होगा कि मेहमानोंकी सुविधाओंका पूरा ध्यान रखा जाये। हम उनका समुचित स्वागत कर सके तो इस प्रसंगमें हमारा पहला और विशेष कर्त्तव्य पूरा हो गया। हमें इसकी पूरी व्यवस्था करनी है कि मेहमानोंको रहने, खाने-पीने, नहाने-धोने, शौच-सफाई और प्रकाश आदिकी सारी सुविधायें मिल जायें।

इस वक्त हम रहने और खाने-पीनेका इन्तजाम एक ही ढंगका कर सकेंगे और वह भी हिन्दुस्तानी ढंगका। मुझे लगता है कि अधिवेशनका आयोजन जहाँ किया जा रहा है, उस जगह हम लोग अंग्रेजी ढंगसे रहनेवाले मेहमानोंके लिए कोई प्रबन्ध नहीं कर सकेंगे। हमें पहले ही से खबर दे देनी चाहिए कि जो लोग सिर्फ अंग्रेजी ढंगसे ही रहना चाहेंगे, उनकी सुविधाकी जिम्मेवारी लेनेमें हम असमर्थ हैं। उन्हें हम यहाँके होटलोंका नाम-ठाम लिखकर भेज दें, इतना ही काफी समझा जाना चाहिए।

परन्तु हिन्दुस्तानी व्यवस्था तो हमें ऊँचे दरजेकी करनी चाहिए। आजकल तो यह माना जाता है कि हिन्दुस्तानी व्यवस्थाके मानी हैं -- गन्दगी और अंग्रेजी व्यवस्थाके मानी हैं -- सफाई। पर नियम असलमें यह होना चाहिए कि जितनी ही अधिक सादगी उतनी ही अधिक सफाई और जितना ज्यादा ढोंग-ढकोसला, उतनी ही ऊपरी शानबान और अन्दर मैलापन। परन्तु अपने आजकलके बरताव में हमने सादगीके साथ गन्दगीको मिला दिया है। हमें इसमें से बाहर निकलना होगा।

टट्टी-पाखानेका इन्तजाम, आम तौरपर, बहुत ही खराब होता है। हमें पाखानोंकी तादाद बहुत रखनी होगी और उनको साफ रखनेके लिए भी आवश्यक व्यवस्था करनी होगी। अगर अकेले मेहतरोंपर ही हमारा दारोमदार रहा तो हम जितनी चाहिए उतनी सफाई न रख सकेंगे। हम अगर छुआ-छूतकी बुराईसे मुक्त हो चुके हों तो हमें पाखाना साफ करनेमें कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। पाखानोंके लिए गड्ढे खोदने होंगे और अगर हम सूखी मिट्टीके बड़े-बड़े ढेर तैयार रखेंगे तो साफ करनेमें जरा भी कठिनाई न होगी। मेरी तो सलाह यह है कि हिन्दी, उर्दू, गुजराती आदि जितनी भाषाओंमें यदि हमसे बन सके, इस विषयकी सूचनायें निकाली जायें तो वे प्रतिनिधियोंमें बांटी जा सकेंगी।

जिस तरह पाखानोंकी, उसी तरह नहाने-धोनेकी भी समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। जिसे गरम पानी चाहिए उसे गरम पानी और जिसे ठंडे पानीकी जरूरत