पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो, उसे ठंडा पानी मिलना चाहिए। इस विभाग के लिए अलग स्वयंसेवक होने चाहिए।

पेशाब-घर विशेष रूपसे अलग बनाये जाने चाहिए।

मैंने अकसर देखा है कि पीने के पानीकी व्यवस्था जैसी होनी चाहिए, वैसी नहीं होती। कामचलाऊ नलों या किसी दूसरे सस्ते उपायों द्वारा हमें उसकी ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि पानी सबको आसानीसे मिल सके। इसके सिवा, जिस तरह यह प्रबन्ध होना चाहिए कि लोगोंको आसानीसे पानी मिल सके उसी तरह नीचे ढुलनेवाले पानी के निकासका भी प्रबन्ध होना चाहिए। नागपुरमें हमने जहाँ-तहाँ पानीके गड्ढे भरे देखे थे।

खाने-पीनेकी व्यवस्थाके बारेमें भी हमें पूरा विचार करना पड़ेगा। ऐसा खयाल है कि नागपुरमें यह व्यवस्था काफी अच्छी थी। यदि हम बंगाल, मद्रास, पंजाब आदि प्रत्येक शिविर के लिए अलग रसोड़ेका प्रबन्ध कर दें तो हम बहुतेरी असुविधाओंसे बच जायेंगे। उत्तम तो यह होगा कि हम प्रत्येक प्रान्तीय कमेटीसे अभीसे उनकी आवश्यकताओंके बारेमें पूछ लें। प्रत्येक जगहसे ज्यादासे ज्यादा कितने लोग आ सकते हैं, यह तो हम जानते ही हैं, अतः उनका प्रबन्ध कर सकनेमें हमें कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।

एक सूचना अभीसे कर देनेकी इच्छा मुझे हो रही है। गुजरातके सब प्रतिनिधि स्वयंसेवक हो जायें। दूसरे स्वयंसेवकोंकी तो जरूरत हमें होगी ही, परन्तु गुजरातके प्रतिनिधि सेवक बनकर हर तरह के इन्तजामकी देखभाल करें और खुद सेवा लेनेका हक छोड़ दें तो हमारी मेहमानदारी बहुत चमक उठे। यदि हम चाहते हों कि कहीं भी अव्यवस्था न हो तो हम सबको पूरी तरह सेवक बन जाना चाहिए।

हमें यह आशा रखनी है कि सब मिलकर एक लाख लोग जमा होंगे और ऐसी ही आकर्षक साधन-सामग्री भी हमें जुटानी होगी।

इस समय हमने इस विषयका विचार अपनी सुविधाकी दृष्टिसे ही किया है, बाकी इसके बाद किसी अगले अंकमें करेंगे।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ४-९-१९२१