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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस भूलके लिए, सभामें लोगों के सामने सबसे पहले ही माफी माँग ली। जब मैंने अपनी भूलका जिक्र किया तब लोग खिलखिलाकर हँस पड़े। क्योंकि वे तो माफीकी उम्मीद ही नहीं करते थे।

असमके लोगोंको जंगली कौन कह सकता है ? कहनेवाला ही मुझ जैसा जंगली होना चाहिए। जिनकी स्त्रियाँ सुन्दरसे-सुन्दर कपड़ा बुनती हैं और अपने हाथका ही बुना कपड़ा पहनती हैं, उन्हें कौन जंगली मान सकता है ?

गुजरात जिस तरह हिन्दुस्तान के पश्चिममें और विन्ध्याचलके दक्षिणमें है उसी तरह असम ठेठ पूर्व और उत्तरमें है। असम हिन्दुस्तानका उत्तर-पूर्वी कोना है। वहाँसे ब्रह्मपुत्र के किनारे-किनारे तिब्बत जानेका रास्ता है और वहाँसे दक्षिणकी ओर पहाड़ों में से होकर ब्रह्मदेश जानेका खुश्की रास्ता है। असममें जहाँ देखिए वहाँ हरियाली ही हरियाली छाई हुई है। असमकी एक पहाड़ी -- चीरापूँंजीपर -- हिन्दुस्तानमें सबसे ज्यादा वर्षा होती है। हर साल औसतन कोई ३६८ इंच पानी बरसता है। १८६१ ईसवीमें तो यहाँ ८०५ इंच पानी बरसा था और उसमें भी, अकेले जुलाई मासमें ही ३६६ इंच। साठ इंचसे कम बरसात तो यहाँ कहीं नहीं होती। इस तरह, जहाँ एक ओर बरसात और दूसरी ओर ब्रह्मपुत्र जैसी नदी हो, वहाँ हरियालीका क्या पूछना ? फिर नदी के आसपास जहाँ-तहाँ टेकड़ियाँ खड़ी हैं, इससे जहाँ-जहाँ नजर फेंकते हैं वहाँ-वहाँ बड़े ही सुन्दर और मनोहर दृश्य दिखाई पड़ते हैं।

जिस मकान में हम लोग ठहराये गये हैं वह ठीक नदीके किनारेपर ही है। सामने नदी शान्तिके साथ बह रही है। 'शान्तिके साथ' शब्दोंका प्रयोग मैंने जानबूझकर किया है। पानी खूब गहरा है। इससे उसमें जरा भी छलछलाहट नहीं दिखाई देती ब्रह्मपुत्रमें इतनी ताकत है कि बड़े-बड़े स्टीमर उसमें बारहों महीने चल सकते हैं। उसके जैसी गहराई हम लोगोंमें आ जाये और उसके जैसी शान्ति हम लोगों में छा जाये, तो हमें स्वराज्य प्राप्त करनेमें किस बातकी देर लगे ? हमें उथले पानीकी छलछलाहट नहीं चाहिए। हमें तो गहरे पानीकी शान्ति और उसमें से प्रकट होनेवाले बलकी जरूरत है।

असममें तरह-तरहके पेड़-पौधे और फल फलते हैं। चाय तो वहाँ है ही। उससे फायदा तो कौन जाने क्या हुआ है; पर नुकसानसे तो हम सब लोग परिचित हैं। असममें केले, अनन्नास, नारंगी, शरीफा इत्यादि बहुतेरे फल होते हैं । अनाजमें चावलकी फसल मुख्य है।

लोग भोले-भाले और सीधे-सादे हैं। हिन्दू-मुसलमान दोनों असमी बोली बोलते हैं। असमिया भाषा बंगलाकी बहन मानी जाती है। लिपि बंगला है। मैं ज्यों-ज्यों ज्यादा घूमता हूँ त्यों-त्यों यही देखता हूँ कि अगर हिन्दुस्तानकी सारी भाषाएँ देवनागरी लिपिमें लिखी जाया करें तो इससे हमारी राष्ट्रीयताको बहुत बड़ी ताकत मिले। लिपियाँ तो बस, दो ही हो सकती हैं -- उर्दू और देवनागरी। असमिया, बंगला, पंजाबी, सिन्धी इत्यादि भाषाएँ यदि देवनागरीमें लिखी जायें, तो उनके समझने में बहुत ही थोड़ी दिक्कत हो, इसमें कोई शक नहीं। ऐसा होनेसे इन सब भाषाओंके पढ़नेवालोंका बहुत-सा समय बच जाये और भाषा बड़ी आसान मालूम होने लगे।