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असमके अनुभव -- १

पर यह तो मैं बीचमें एक नया ही मसला छेड़ बैठा। असमके लोगोंको और लोगोंसे सुखी कह सकते हैं। उनकी जमीनको बहुत जोतना नहीं पड़ता। नदीकी धारायें जमीनको खाद देती रहती हैं। इससे लोग थोड़ी मेहनतसे ही अपनी रोजी कमा सकते हैं। असम बड़ी देर बाद अंग्रेजोंके कब्जे में आया, जिससे उसमें 'सुधारों 'का, नई सभ्यताका प्रवेश कम हो पाया है। इससे लोग अपना धन और अपनी समृद्धि कायम रख पाये हैं। असम के लोग मजदूरी तो करते ही नहीं। पर चायके खेतोंपर तो मजदूरोंके बिना काम चल ही नहीं सकता। इसलिए संयुक्त प्रान्तसे मजदूर बुलाये जाते हैं। यही कारण है कि मजदूरोंके साथ अत्याचारोंकी कितनी ही बातें सुनाई देती हैं, और इसीसे चान्दपुरके जैसी घटना घटित हो सकी।

असम में, पचास साल पहले, ऐसा जमाना था कि वहाँके लोगोंकी तमाम जरूरतें वहीं पूरी हो जाती थीं। पाठक यह जानकर खुश होंगे कि आज भी असममें हरएक औरत बुनना जानती है। अपना कपड़ा वे खुद ही बुन लेती हैं। छोटे-बड़े सब घरोंकी स्त्रियाँ बुनना जानती हैं। वे पेशेके तौरपर बुननेका काम नहीं करतीं; बल्कि घरमें जब-जब फुरसत मिल जाती है तब-तब वे बुनाई किया करती हैं। जो लड़की बुनाई नहीं जानती उसकी तो सगाई होना ही मुमकिन नहीं। जिस घरमें मैं ठहरा हूँ उसके मालिक बड़े जमींदार हैं; पैसेकी कमी नहीं; लेकिन उनकी ७० वर्षकी बूढ़ी माँ, और बहनें और पत्नी, सब कपड़ा बुनती हैं। उनकी एक दस ग्यारह सालकी लड़की है। वह भी बुनाई करती है।

असम में रेशम भी अच्छा पैदा होता है। इससे वहाँकी औरतें रेशम और सूत दोनों बुनती हैं। उनपर अनोखे बेलबूटे भी काढ़ सकती हैं । पचास बरस पहले प्रत्येक स्त्री सूत भी कातती थी और बुनती भी थी। पर जबसे अंग्रेजी राज्य आया तबसे उसके साथ ही, विलायती सूत भी वहाँ आ पहुँचा। इसी सूतने सब-कुछ चौपट कर दिया। इसी सूतसे ललचाकर औरतोंने कातनेका काम छोड़ दिया। सौभाग्यसे यह नियम था कि जो बुनना नहीं जानती वह शादी करनेका भी हक नहीं रखती, इसलिए बुननेकी कला कायम रह गई। जिन औरतोंको अभ्यास है उनके लिए तो कातना आसान ही है। इससे अब फिर औरतोंमें जागृति हुई है और कातनेका काम भी शुरू हुआ है। पर जिन दिनों असम में विलायती सूतका प्रवेश हुआ उन्हीं दिनों एक अंग्रेजी अवलोकनकर्ताने यह टीका की थी कि विदेशी सूतको अंगीकार करके इन स्त्रियोंने कुछ कमाया नहीं। क्योंकि उन्होंने कताईके बदले किसी दूसरे उद्योगकी तजवीज नहीं की।

असम में आज भी ४० हजार एकड़ जमीनमें कपास पैदा होती है। यह रुई बड़े ऊँचे दरजेकी होनी चाहिए, क्योंकि इसकी जो पूनियाँ मुझे दिखाई गई थीं उन्हें देखकर मुझे आन्ध्र देशकी पूनियोंकी याद आ गई। पूनियाँ बहुत ही साफ-सुथरी, और मुलायम थीं और उनमें कचरा नहीं था। मुझे एक कपड़ेका नमूना भी दिया गया था, वह भी इतना बढ़िया था कि प्रायः आन्ध्रके कपड़ेकी बराबरी करता था।

असम में असमिया भाषा बोलनेवालोंकी आबादी ३७ लाख है । इनमें कमसे कम १० लाख औरतें हैं। यदि ये दस लाख औरतें हिन्दुस्तानके लिए कातें और बुनें तो