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असम के अनुभव--१

पतली साड़ियाँ, टोपियाँ और लेसें देखीं। होली सुलगानेका पवित्र काम तो मेरे ही हाथों कराया जाता है। होली सुलगाने के बादका दृश्य मुझे बड़ा भव्य दिखाई दिया। सैकड़ों बारीक कमीजें और दूसरे कपड़े हवामें उड़ते हुए होलीमें गिर रहे थे। इस प्रान्त में टोपी कम पहनी जाती है। इससे विदेशी टोपियाँ कम उछलीं। खादी तो यहाँ भी पहुँच गई है। इससे जो लोग टोपी पहनते हैं वे बहुत करके खादीकी ही पहनते हैं।

मारवाड़ी

असम में मारवाड़ी भाइयोंकी संख्या काफी अधिक है। बाह्रका तमाम व्यापार उन्हीं के हाथों में है। मैं पहले ही कह चुका हूँ कि आसामके लोगोंके अपने खेतों में फसल अच्छी होती है इसलिए वे व्यापारमें अथवा नौकरीकी झंझटमें बहुत कम पड़ते हैं। इससे व्यापारको मारवाड़ियोंने अपना लिया है और सरकारी नौकरियाँ बंगालियों के हाथ में आ गई है। इनमें से बहुतसे मारवाड़ी विदेशी सूत और कपड़ेका व्यापार करनेवाले हैं। उनमें से कितने ही -- कोई ६५ -- व्यापारियोंने प्रतिज्ञा की है कि अब वे विलायती कपड़ा और विलायती सूत नहीं मँगायेंगे।

मुसलमान भाई

असम में मुसलमान भाइयोंकी आबादी बहुत बड़ी है। परन्तु फिर भी वे सार्वजनिक कामों में कम हिस्सा लेते हैं। खिलाफत के मामलेका भी उन्हें पूरा ज्ञान नहीं है। पर अब उनमें भी अच्छी जागृति देखी जाती है। कहा जा सकता है कि हिन्दू नेताओंने उन्हें जगाया है। इससे यहाँ हिन्दू-मुसलमानोंमें वैर भाव नहीं देखा जाता। मौलाना मुहम्मदअली और मौलाना आजाद सोबानीके आनेसे मुसलमानोंमें अधिक जागृति और हिम्मत आ गई है।

दूसरेके धनपर चैन

मैंने ऊपर कहा है कि गोहाटी असमका मुख्य शहर है। लेकिन गोहाटी असमकी राजधानी नहीं है। असमकी राजधानी तो शिलाँग है। गोहाटीसे कोई पाँच घंटे में मोटर के जरिये वहाँ पहुँचा जाता है। शिलांग समुद्रकी सतह से ४ हजार फीट ऊँचा है। मैं वहाँ नहीं जा सका। पर कहते हैं कि वह तो केवल यूरोपीय लोगोंके ही रहनेकी जगह है। अगर शिमला में भी बारहों मास रहनेकी सुविधा होती तो वहाँ भी केवल गरमी भरकी राजधानी नहीं रहती, वरन् हमेशाकी हो जाती। यदि दार्जिलिंगमें लोग हमेशा रह सकते होते तो दार्जिलिंग बंगालकी बारहों मासके लिए राजधानी हो जाता। क्या बम्बई अहाते में तीन राजधानियाँ नहीं हैं ? कभी बम्बई, कभी गणेशखिण्ड और गर्मियों में महाबलेश्वर। परन्तु शिलाँगकी आबहवा ऐसी है कि वहाँ यूरोपीय लोग बारहों महीने मजे में रह सकते हैं। इसलिए शिलांग असमकी राजधानी बनाया गया है। इतने ऊँचेपर भला कहीं खेतोंमें काम करनेवाले मजदूरोंकी पुकार पहुँच सकती है ? हर बात में 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' वाला मामला देखा जाता है। 'प्लांटर'-- बागान-मालिक -- शिलाँगमें रह सकते हैं और जब चाहें तब वहाँ जा सकते हैं। उनके