मेरी समझ में नहीं आता कि तुम्हें 'यंग इंडिया' क्यों नहीं मिलता है। मैं पता लगा रहा हूँ।
जब तुम भारत लौटोगी, तब तुम्हें आश्रमके अन्दर अधिकांश समय धुनने, कातने-बुनने में व्यतीत होता दिखाई देगा। यदि डेन्मार्क में हाथ की कताई-बुनाईका काम होता हो तो मेरी इच्छा है कि तुम वहाँकी यह कला सीख लो।
ईश्वर महान है। हम जो प्रयत्न कर रहे हैं उनसे नहीं, किन्तु उसकी कृपासे इसी साल स्वराज्य पाना सम्भव हो सकता है। और तब तुम बिना रुकावट वापस आ सकोगी।[१] स्वराज्य पानेके लिए जितनी दृढ़ताकी जरूरत है उतनी ही उसे स्थापित करने में भी होगी। एन मेरीको[२] स्वराज्य प्राप्तिके लिए यहाँ काम करने दो और तुम वहाँ इसको सफल बनानेके लिए काम करती रहो।
तुम्हारा,
बापू
माई डियर चाइल्ड
२५. पत्र : सरदार वल्लभभाई पटेलको
१४८ रसा रोड,
कलकत्ता
मौनवार [५ सितम्बर, १९२१][३]
आपका पत्र मिला। मैं दर्शकों के बारेमें 'यंग इंडिया'[४] में लिखूंगा।
मेरा जी तो वहाँ आनेके लिए तड़प ही रहा है। मगर यहाँसे छुट्टी नहीं मिल सकती। मद्राससे राजगोपालाचार्य[५] का तार आया है कि उनका तार मिलनेके बाद ही मैं यहाँसे रवाना होऊँ। १२ तारीखतक मुझे यहाँ काम भी है।
बंगालमें स्वदेशीका काम शिथिल हो गया है। चरखे जरूर ठीक चले हैं। मगर सूतका वजन रखने और खादीपर ध्यान देनेका काम कम हुआ है।
- ↑ कुछ समर्थके लिए ब्रिटिश सरकारने एस्थरको भारत लौटनेकी अनुमति देनेसे इनकार कर दिया था।
- ↑ एन मेरी पीटर्सन, जिन्होंने एस्थरके साथ दक्षिण भारत में काम किया था; वे कुछ समयतक साबरमती आश्रम में रहीं थीं।
- ↑ महादेव देसाईके नाम, २२-८-१९२१ के पत्र में दिये गये कार्यक्रमके अनुसार गांधीजी कलकत्ता ४ सितम्बर, १९२१ को पहुँचनेवाले थे और वहाँ १२ सितम्बरतक ठहरनेवाले थे। इस अवधि में मौनवार ५ सितम्बर को ही था।
- ↑ देखिए "टिप्पणियाँ" २२-९-१९२१ का उप-शीर्षक “कांग्रेस अधिवेशन कोई तमाशा नहीं"।
- ↑ चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य (१८७९ - राजनीतिज्ञ, १९४८ में पहले भारतीय गवर्नर-जनरल