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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ऐसा लगता है कि इस महीने के लिए कानून-भंग रुक सके तो अच्छा। दिल्ली [के प्रस्ताव ] की शर्त के अनुसार भी जितना धरना दिया जा सके उतना भले दिया जाये। जब हम कानून तोड़ें, तब जान हथेलीपर लेकर ही तोड़ें, यह ज्यादा ठीक लगता है। एक बार हमारी मण्डलीके साथ मेरी चर्चा हो जाये, तो मुझे ज्यादा पता चलेगा। फिलहाल स्वदेशीपर -- विदेशी कपड़ेका बहिष्कार और खादीकी उत्पत्ति इन दोनों अंगोंपर -- खूब ध्यान दिया जाये तो अच्छा।

आपके पत्रसे मान लेता हूँ कि आजकल वहाँ विद्यापीठमें कोई झगड़ा नहीं चल रहा है।

अपनी तबियत सँभालकर रखना। दिसम्बर तक बहुत काम करना है। हिन्दुस्तानका चेहरा तो जरूर बदलेगा। सिंह होगा या सियार, यह या तो ईश्वरके हाथ है या हमारे।

वाइसरायके भाषण से मेरा मोह तो और भी कम हो गया है। युवराज अगर राजनीतिक कामसे नहीं आ रहे हैं तो किसलिए आ रहे हैं और किसके खर्चसे ? परन्तु इसका हमें अभी विचार ही नहीं करना है।

मोहनदासके वन्देमातरम्

भाईश्री वल्लभभाई पटेल, बैरिस्टर
भद्र, अहमदाबाद
[ गुजरातीसे ]
बापुना पत्रो - २ : सरदार वल्लभभाईने


२६. पत्र: मणिबहन पटेलको

कलकत्ता
मौनवार [सितम्बर ५, १९२१][१]

चि० मणि,

अभी-अभी तुम्हारा पत्र मिला। मेरी मांग तो पहनने के ही कपड़े जलानेकी है। किसी के घर विलायती जाजमें वगैरा रखी हैं, कोचोंपर विदेशी कपड़े चढ़े हैं-- ये सब अधिकांश लोग नहीं देंगे। इसलिए उनकी माँग नहीं की। ऐसी कोई नई चीज वे अब न लें तो उतना काफी है। हमें पहनने के कपड़ोंकी ही मांग करनी है। मैं 'नवजीवन'में लिखूँगा।

पर्युषणमें उपासरे[२] जाना तय किया, वह अच्छा है। इन बहनों में से कोई अपने कपड़े देती हैं ?

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  2. जैन साधुओंका निवास-स्थान।