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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खिलाफत तथा पंजाबके सम्बन्धमें सरकार द्वारा किये गये अन्यायोंको दूर करानेको तैयार हूँ। इसी आशयका प्रस्ताव कांग्रेस कमेटी और खिलाफत समिति, दोनोंने हो, पास किया है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने इस आशयका भी एक प्रस्ताव पास किया है कि इसी ३० तारीखसे पहले ही विदेशी वस्तुओंका पूर्ण बहिष्कार हो जाना चाहिए और लोगोंको अपने ही देशमें बने कपड़े पहनने चाहिए। श्री गांधीने श्रोताओंसे कहा यदि आप लोग वास्तवमें देशकी भलाई चाहते हैं तो उक्त प्रस्तावको कार्यान्वित करें। आगे बोलते हुए श्री गांधीने कहा कि मैं जानता हूँ कि सिख समाज एक बहुत ही सशक्त समाज है। यदि इस समाजके लोग सचमुच अपने कामको निष्ठा और लगनके साथ करेंगे और चरखेको अपनायेंगे तो मेरे मनमें इस बातका जरा भी सन्देह नहीं कि वे न केवल अपने समाजको वरन् सारे भारतके लोगोंको जरूरतभरका कपड़ा दे सकेंगे। में चाहता हूँ कि आप लोग अहिंसात्मक असहयोग के सिद्धान्तका समग्र रूपसे पालन करें और किसी हालतमें भी कोई ऐसा तरीका न अपनाएँ जिसका परिणाम हिंसा हो। उन्होंने ननकाना साहबकी दुखद घटनापर[१] बहुत ही खेद व्यक्त करते हुए कहा कि यह घटना पंजाबकी घटनासे भी ज्यादा निन्दनीय और खून खौलानेवाली है। सिखोंने इसे जिस रूपमें लिया है वह स्वाभाविक ही था। मैंने उनकी सभाओंकी रिपोर्ट पढ़ी है और उनके बारेमें सुना भी है, परन्तु उनसे मेरा निवेदन यह है कि वे उन सब घटनाओंको भूल जायें। यह सच है कि शहरोंने जो पाप किया है उसका प्रायश्चित नहीं है। और सामान्यतः यही माना जा रहा है कि उन अन्यायोंका एकमात्र निराकरण यही है कि उन अधिकारियोंको दण्ड दिया जाये। श्री गांधीने कहा कि में उन्हें दण्ड दिया जाना पसन्द नहीं करता। मेरी रायमें केवल भगवान ही उन्हें दण्ड देनेका अधिकारी है। अन्तमें श्री गांधीने सिखोंको सलाह वी कि जिस महान कार्य में आप लगे हुए हैं उसे शान्तिपूर्वक पूरा करनेका प्रयत्न करें।

मौलाना आजाद सोबानी और लाला लाजपतरायने[२] भी असहयोग और बहिष्कारपर भाषण दिया।

[ अंग्रेजीसे ]
अमृतबाजार पत्रिका, ९-९-१९२१
  1. देखिए खण्ड १९, १४४०१-४।
  2. लाला लाजपतराय ( १८६५ - १९२८ ); समाज सुधारक, लेखक और राजनीतिक नेता; १९०७ में निष्कासित; सर्वेन्ट्स आफ पोपुल्स, सोसाइटीके संस्थापक; १९२० में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष।