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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिन-ब-दिन बढ़नेवाले खिलाफत आन्दोलनका गला घोंट देना चाहती है। यह तो सरासर सारे मुसलमानोंको और मुसलमानोंको ही क्यों, सारे हिन्दुस्तानको सीधी चुनौती देना है; क्योंकि खिलाफतका सवाल अब सारे हिन्दुस्तानका मसला हो गया है। अब यह महज मुसलमानोंकी ही शिकायत नहीं रह गया है।

लेकिन यह लिखने में मेरा आशय सरकारको उतना नहीं जितना लोगोंको सचेत कर देनेका है। अगर लोगोंने अली भाइयोंके सन्देशका मर्म समझ लिया हो तो उन्हें अपने मजहब के लिए, और अपने मुल्कके लिए, सरकार के द्वारा चाहे जितना उकसाये जाने पर भी शान्त बने रहना चाहिए। उन्हें अपने देश और धर्मके लिए हद दर्जेतक कष्ट सहन करना चाहिए। उनका सन्देश यह है कि हिन्दुओं और मुसलमानोंका हित एक दूसरेमें मिला हुआ है; उन्हें साथ-साथ तैरना या साथ-साथ डूबना होगा। उन्हें फौलादकी तरह पक्के रहना होगा और शेरकी तरह बहादुरी दिखानी होगी और चाहे वे फाँसीपर क्यों न चढ़ा दिये जायें, जिस बातको वे सत्य समझते हैं उसे कहे बिना कभी न रहेंगे। ऐसे वक्त में लोग अली भाइयोंकी जो बड़ीसे-बड़ी इज्जत कर सकते हैं वह यह है कि असहयोग के कार्यक्रमके एक-एक अक्षरका अनुसरण करें और इसी सालके भीतर स्वराज्य प्राप्त कर लें। उनके जेल जानेपर गुस्सा दिखाना सिवा पागलपनके और कुछ न होगा। हमने हिम्मतके साथ यह इरादा जाहिर किया है और इस बात की तैयारी की है कि इस मौजूदा शासन-प्रणालीको नेस्तनाबूद कर दें और उसके हाकिमों और अफसरोंको चुनौती दी है कि वे हमारे लिए बुरे से बुरा जो कर सकते हैं, करें। ऐसी हालत में अगर वे हमारी चुनौतीको स्वीकार कर हमारे साथ संजीदगीसे पेश आयें तो न हमें ताज्जुब करनेकी जरूरत है, न गुस्सा करनेकी। क्योंकि किसी न किसी दिन या तो यह मानकर कि हम जो कहते हैं वैसा करनेका इरादा भी रखते हैं, उन्हें हमें उस परीक्षाकी आँचमें, जिसे हम खुद ही बुला रहे हैं, तपाना होगा और या हमारी मर्जी के मुताबिक उन्हें सुधार करना होगा। अगर, इस तरह हम अपनी ही बनाई तराजूपर तौले गये और हलके साबित हुए तो मतलब यह होगा कि हमने इस खेल के नियमोंको बुरी तरह तोड़ा। इसलिए, जब कभी कोई गिरफ्तार हो तो उस हालत में असहयोगियोंके पास सिर्फ एक ही इलाज है और वह है असहयोगके कार्यक्रमको पूरा करनेमें दूने उत्साह और दूनी सरगर्मी के साथ अपनी ताकतोंको लगाना। अर्थात् वे विलायती कपड़ेका बहिष्कार कर दें और अपनी जरूरत-भरका कपड़ा अपने ही घरोंमें तैयार करें। हाँ, हड़तालें तो हरगिज न की जायें।

श्री पेण्टर गुजरातपर थोपे जा रहे हैं

मैंने अभी-अभी सुना है कि श्री पेण्टरको जिन्होंने धारवाड़के लोगोंको अपने क्रूर व्यवहारसे दुःखी करके काफी कुकीति कमाई है[१] तरक्की दी जानेवाली है और उन्हें कमिश्नर बनाकर गुजरातपर थोपा जा रहा है। एक ऐसा सरकारी अधिकारी जिसने जनताकी निगाह में अपनी प्रतिष्ठा खो दी है, सरकारसे अपनी प्रशंसनीय सेवाओंके लिए इनाम पाता है-- इसे विडम्बना ही कहना चाहिए। मैं आशा करता हूँ कि

  1. देखिए “टिप्पणियाँ", १-९-१९२१ का उप-शीर्षक "खादीके नाशका प्रयत्न"