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टिप्पणियां

पास और कोई उपाय है ही नहीं। उनका और मेरा घनिष्ठतम सम्पर्क रहा है। साधु खासकर कुछ ऐसी बातें समझने के लिए आये थे जिनके बारेमें उन्हें पूरी जानकारी नहीं थी । उदाहरणके लिए उन्हें यह नहीं मालूम था कि हिन्दू-मुस्लिम मैत्रीसे मेरा क्या अभिप्राय है; अल्पसंख्यकोंकी स्थिति क्या होगी और आन्दोलन अन्ततक अहिंसात्मक रह सकेगा या नहीं। इन सब तथा अन्य विषयोंपर हमारी बातचीत बहुत देर-तक होती रही और निश्चय ही उनकी बातचीतकी मुझपर यह छाप पड़ी कि कोई भी धार्मिक व्यक्ति इसके सिवा कोई दूसरा रास्ता चुन ही नहीं सकता। बेशक सबसे बड़ी कठिनाई आम जनताको अन्ततक अहिंसात्मक बनाये रखना ही है। आदमीके लिए भले ही कुछ शक्य न हो किन्तु प्रभुके लिए कुछ भी अशक्य नहीं है। वैसे तो मेरी इच्छा इस बातचीतका उल्लेख करनेकी नहीं थी किन्तु जिन मित्रोंने इस बातकी ओर मेरा ध्यान आकृष्ट किया है उनका कहना है कि साधु सुन्दरसिंह परेशानी में पड़ गये हैं और उपरोक्त अनुच्छेदका उपयोग भारतीय ईसाइयोंको आन्दोलनसे विरत करनेकी दृष्टिसे किया जा रहा है। आन्दोलनकी सफलता या विफलता उसके अपने गुण-दोषोंपर आधारित है। अगर उसके प्रतिपादक ही अपने उत्तरदायित्वसे च्युत होते हैं तो कोई भी प्रशंसा उसके रक्षणमें असमर्थ है और यदि वे अन्ततक साहसपूर्वक डटे रहते हैं तो उसकी बड़ीसे बड़ी निन्दा भी उसको कोई स्थायी क्षति नहीं पहुँचा सकती। फिर भी मुझे लगा कि साधु सुन्दरसिंहके विचारोंके बारेमें जो कुछ मैं जानता हूँ उसे जनतासे छिपाना ठीक नहीं है।

नये युगका उषःकाल

श्री पियर्सनने अपने लेख में प्रश्नका उत्तर स्वीकारोक्तिमें दिया है। मैं उस उत्तर का प्रथम भाग इस अंक प्रकाशित कर रहा हूँ। कुछ लोगोंको शायद वह लेख बहुत ही ज्यादा आशावादी लगे किन्तु निराशावादी होनेसे आशावादी होना बेहतर है। कदाचित् नये युगके प्रारम्भका सबसे अच्छा प्रमाण एशिया के उस कविका, जो नवभावना और नवीन आशाका प्रतिनिधित्व करता है, यूरोप और अमेरिकामें किया गया शानदार स्वागत है। उनका सम्मान उनकी कुलीनता या विद्वत्ताके कारण नहीं बल्कि उस नवीन सन्देशके लिए किया गया है जो उनके जीवनका मुख्य लक्ष्य है । ऐसा लगता है कि यह आशा करना तो एक तरहसे बहुत ज्यादा होगा कि यह सबेरा उस अधम साम्राज्यवादी भावनाके पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो जाने से पहले ही होगा जिसका कि अंग्रेज लोग प्रतिनिधित्व करते हुए जान पड़ते हैं। नये युगका प्रारम्भ होने से पूर्व ब्रिटेनको एक वास्तविक 'कॉमनवेल्थ' बन जाना चाहिए या उसका साम्राज्य के रूप में बने रहना समाप्त हो जाना चाहिए या फिर उसे नये युगके प्रारम्भसे पूर्व समाप्त ही हो जाना चाहिए। और किसी कारणसे नहीं तो केवल इस कारणसे कि वहाँके कुछ बड़े-बड़े लोग हृदयसे विश्वास करते हैं कि वही एक ताकत है जो आज शान्ति बनाये हुए है, लेकिन वही संसारकी शान्तिके लिए सबसे बड़ा खतरा है। वे यह मानने से इनकार करते हैं कि शस्त्रोंके बलपर, जबरन् कायम रखी जानेवाली शान्ति कोई शान्ति नहीं होती। इसलिए यदि ब्रिटेन येनकेन प्रकारेण अपनी नीति और उसके फल-

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