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सम्पूर्ण गांधी वाड्मय

स्वरूप अपना हृदय परिवर्तित नहीं करता तो नया सबेरा होनेसे पहले अंग्रेजों और जर्मनोंके बीच हुए महायुद्धसे भी अधिक भयंकर विश्व युद्ध अवश्य छिड़ जायेगा। ब्रिटेनके हृदय परिवर्तन के लिए हमें प्रार्थना और प्रयास करना उचित है ।

प्रकाशनकी दृष्टिसे अवांछनीय

कुछ ऐसी बातें होती हैं जिनका छप जाना पसन्द नहीं किया जा सकता; सो इसलिए नहीं कि उनमें कुछ गोपनीयता होती है, वरन् इसलिए कि वे इतनी अधिक पवित्र हैं कि उनका प्रकाशित किया जाना अनुचित माना जायेगा । कभी-कभी प्रकाशित विवरण मनपर जो छाप डालता है वह कही गई बातसे बिलकुल भिन्न होता किन्तु हो सकता है कि वह विवरण वैसे बिलकुल सही हो । यदि मैं बतौर मज़ाकके या घुड़ककर किसी छोटे बच्चेको पक्का बदमाश कह दूँ तो केवल इतना ही विवरण देना काफी नहीं हो सकता है कि मैंने किसीको पक्का बदमाश कहा । ऐसे अवसरों-पर उचित तो यह है कि उसे पक्का बदमाश कहने के कारण और परिस्थितिपर भी प्रकाश डाला जाये । गत दूसरी तारीखके 'बॉम्बे क्रॉनिकल'में एक विवरण[१] प्रकाशित हुआ है, उसमें सत्याग्रह आश्रम साबरमतीमें हुए एक वार्तालाप और विवादका विवरण है। मित्र जान पड़नेवाले उस विवरणके प्रेषक महोदयने कुछ इसी प्रकारका अहितपूर्ण

कार्य किया है। मैं ऐसी बातोंका विवरण प्रकाशित किया जाना नापसन्द करता हूँ । बातचीतकी झड़ीमें कुछ अनकहा रह ही जाता है। और तब ऐसी बातचीतका सही विवरण विस्तृत और स्पष्ट पाद-टिप्पणियोंके बिना दे सकना सम्भव नहीं होता । उदाहरणार्थ उक्त विवरण के अनुसार मैंने यह कहा कि शान्तिनिकेतन भौतिक प्रगतिके लिए है और सत्याग्रह आश्रम पूरी तरह आत्मिक उन्नतिके लिए। इसे पढ़नेपर यदि कविवरके ध्यानमें रहा कि मैं शान्तिनिकेतनके बारेमें ऐसी बात कह ही नहीं सकता और न कभी मेरा ऐसा अभिप्राय हो ही सकता है तो वे इस विवरणपर हँसेंगे; नहीं तो यह सोचकर क्रुद्ध और निराश होंगे कि मैं भी कैसा निपट अनभिज्ञ और अनाड़ी हूँ कि शान्तिनिकेतनका आध्यात्मिक स्वरूप ही नहीं पहचान पाया। मुझे पूरा

 
  1. १. बातचीतका २-२-१९२२ के हिन्दूमें प्रकाशित ब्योरा इस प्रकार था: “महात्माजीने आश्रमके पुराने निवासियोंको अपने समीप बुलाया और आश्रमके बारेमें उनकी राय पूछी । विभिन्न राधे व्यक्त की गईं। कुछ लोगोंने आश्रमके नियमोंको बहुत कड़ा कहा और कुछ उन्हें और भी कड़ा करनेके पक्षमें थे। उसके बाद गुजरात महाविद्यालयके हिन्दी-शिक्षकने जो पहले शान्तिनिकेतन में थे, कहा: " हम लोग जो संयुक्त प्रान्तके हैं, शामको जल्दी खा लेना पसन्द नहीं करते और न सुबह चार बजेका उठना । मेरे लिए तो यह बिलकुल ही असम्भव है । " बापूजी मुस्कराए और बोले : “देखिए आपका शान्तिनिकेतन भौतिक प्रगतिके लिए है और सत्याग्रह आश्रमका लक्ष्य है केवल आत्मिक प्रगति । आप कहते हैं कि शान्तिनिकेतनमें व्यक्तिगत स्वतन्त्रता अधिक है किन्तु मैं इसे स्वतन्त्रता नहीं कहता । मैं इसे उच्छृंखलता कहता हूँ । सुबह जल्दी उठना अच्छा होता है। रोज सुबह प्रार्थनाके बाद ही मैं नवजीवन और यंग इंडिया के लिए लिखता हूँ। मैं प्रातःकालमें अन्य किसी समयकी अपेक्षा कहीं अधिक अच्छी तरह एकाग्रचित्त हो पाता हूँ। यदि आप जल्दी सो जायें तो जल्दी उठना कठिन नहीं है। जहां तक मेरा सवाल है, आप जानते हैं कि मेरा सोनेका समय दस बजे है ।"