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यकीन है कि उक्त संबाददाताने शान्तिनिकेतनके बारेमें मेरी जो धारणा व्यक्त की है वह मेरे मनमें कभी आ भी सकती है, कविवर ऐसा मानकर मेरे साथ अन्याय न करेंगे । मैं कविसे यह कहनेको तैयार हूँ; और सच पूछिए तो कह भी चुका हूँ कि शान्तिनिकेतनर्में अनुशासनकी कमी जरूर है। वे उसपर हँस दिये थे और उन्होंने मेरी आलछोचताकी पुष्टि की तथा यह कहकर उसे उचित बताया था कि 'मैं कवी हूँ शान्तिनिकेतनके और मेरे चित्तरंजनका स्रोत है। मैं तो केवल गा सकता हूँ और लछोगोंसे गवा सकता हूँँ। आप चाहें तो यहाँ अपने मनका अनुशासन चहछायें; किन्तु में तो कोरा कवि हूँ ।' पाठक जानते होंगे कि में शान्तिनिकेतनर्में कई बार ठहर चुका हूँ। उसे अपता विश्वामगृह माननेकी मुझे अनुमति प्राप्त है। जब में इंग्लैडमें[१] था तब आफ़िकासे भारत आये हुए मेरे विद्यार्थी वहाँ और गुरुकुल (काँगड़ी) में रहे थे। हिन्दी शिक्षकके साथ मेरी बातचीतका आधार ही यह था कि हम दोनों ही शान्तिनिकेतनके प्रेमी हैं। जब शान्तिनिकेतनके सारे कामकाज शुद्ध आध्यात्मिक काव्यके रचयिताकी छत्रछायामें ही चलते हैं तों फिर वह एक आध्यात्मिक स्थानके अतिरिक्त हो ही वया सकता है? में इतना मतिमन्द नहीं हूँ कि यह सोचूँ कि जिस स्थलपर दैेवेन्द्रनाथ ठाकुर [२] रहा करते थे बह आध्यात्मिक भावनासे विहीन हो सकता है। यंग इंडिया के पाठक जानते हैँ कि मुझे समय-समयपर शान्तिनिकेतनसे “बड़ो दादा के भेजें हुए आध्यात्मिक सन्देश मिलते रहते हैँ और वे मुझपर निरच्तर कृपादृष्टि रखते हैं और मेरे उद्देयकी सफलताके लिए प्रार्थना भी करते रहते है। में यहीं यह निवेदन कर देना चाहता हूँ कि शान्तिनिकेतनके कई प्राध्यापकों और शिक्षकोंको में बहुत ही आध्यात्मिक और सत्‌ पुरुष मानता हूँ। उनके सम्पर्ककों मेने अपना सौभाग्य मानता है; और यह भी कह दूँ कि भारतके प्रास्तोंमें बंगाछको में सबसे अधिक आध्यात्मिक मानता हूँ। दुर्भाग्ससे जिसका विवरण प्रकाशित कर दिया गया है, मेरी वह पूरी बातचीत मजाकके

लहजेंमें चल रही थी। इसी लहजेमें शान्तिनिकेतनसे प्रेम करनेवाले सज्जनोंके बीच मैंने प्रायः शान्तिनिकेतनकी अपेक्षा सत्याग्रह आश्रममें अधिक आध्यात्मिकता होनेका दावा किया है। किन्तु इस स्पर्धा और दावेका अर्थ अपनेको बढ़ा-चढ़ाकर प्रकट करना नहीं है। मैं सत्याग्रह आश्रमकी आम जनताकी नजरोंसे दूर ही रखना चाहता हैँ । हम आश्रमके लोग विनम्र और वित्ता पढ़ें-लिखे कार्यकर्त्तागण हैं और हमें अपनी कमजोरियोंका भान है। उन्हें हम अधिकाधिक समझनेकी कोशिश कर रहे हैं और निः:सन्देह सत्यकी उपलब्धिके लिए कटिबद्ध हैं और उसीके लिए जीना और मरना चाहते हैँ। साम्य रखते हुए भी जो एकरूप नहीं है ऐसी संस्थाओंकी परस्पर तुलना कदापि नहीं की जानी चाहिए । यदि तुलना करनी ही हो तो मे सच्चे हृदयसे शान्तिनिकेतन को आश्रमके बड़े भाईका स्थान दूँगा भले ही आश्रममें लोग सुबह जल्दी उठ जाते हों और अनुशासनपरायण भी हों। वह उम्रमें कहीं बड़ा है और में जानता हूँ कि बुद्धिमत्तामें भी बड़ा है। लेकिन एक लेकिन तो वहाँ लगा हुआ ही है। शान्ति

 
  1. १. १९१७ में; देखिए खण्ड १३ पृष्ठ १९-२० |
  2. २., रवीन्द्रनाथ ठाकुस्के पिता ।