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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
सकते हैं। अलीगढ़ दमनका शिकार है या हो चुका है, यह कहना भाषा और तथ्यका उपहास करना है।"

भवदीय,
जे॰ ई॰ गोन्डगे

लखनऊ,
१६ फरवरी, १९२२

यह कोई प्रतिवाद नहीं है। यह तो एक माने हुए बल-प्रयोगको न्यायोचित ठहराने का प्रयास है। हर जालिम अपने गैर-कानूनी व्यवहारको न्यायोचित बताता है। असहयोगी अपनी चोटोंकी शिकायत लेकर कलेक्टरके पास नहीं गये, यह स्वाभाविक ही था। यदि 'प्रहार' करना और चोटोंके 'निशान उछल आना' इस बातका प्रमाण है कि सख्ती नहीं की गई, तो मैं यह जाननेको उत्सुक हूँ कि अलीगढ़ में जब सख्ती की जायेगी तब क्या होगा। यदि श्री शेरवानीकी गिरफ्तारी एक बड़ी नरमी थी और श्री ख्वाजाकी गिरफ्तारी और भी बड़ी नरमी तो प्रहार और चोटोंके निशान निश्चय ही सबसे बड़ी नरमीके सूचक हैं।


बनारस जेल में

सम्पादक
'यंग इंडिया'
प्रिय महोदय,
१८ फरवरी, १९२२ के अपने अर्द्ध-सरकारी पत्र संख्या ४०४-सी के सिलसिले में, मैं आपका ध्यान बनारसके विष्णुदतिया नामक व्यक्तिके ५ फरवरीके उस तारकी ओर खींचना चाहता हूँ जो महात्मा गांधीके नाम भेजा गया था और जो आपके पत्र में ९ तारीखको प्रकाशित हुआ है। उसमें कही गई बातोंकी छानबीन कर ली गई है, और मैं आपसे यह प्रार्थना करता हूँ कि आप उस तारका यह स्पष्टीकरण और प्रतिवाद प्रकाशित कर दें। जाँचका यह विवरण कुछ लम्बा है। इसके लिए मैं क्षमा चाहता हूँ। तारमें कुछ अनमेल बातें, असंगतियाँ थीं और इससे लोगोंमें बहुत बेचैनी फैल गई है, इसलिए आरोपोंका उत्तर काफी विस्तारसे देना पड़ रहा है। बनारस केन्द्रीय जेलके सुपरिटेंडेंट, मेजर एन॰ एस॰ हार्वे द्वारा मेरे पास भेजा गया विवरण में उद्धृत करता हूँ :
इस मामले के सिलसिले में तथ्य इस प्रकार हैं। संयुक्त मजिस्ट्रेटने २१ जनवरी, १९२२ को भारतीय दण्ड संहिताकी धारा १४३के अन्तर्गत आठ नव