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सरकार द्वारा प्रतिवाद
युवकोंको कठोर कारावासका दण्ड दिया था और 'गैर-राजनीतिक कैदियों' की श्रेणी में रखा था। चूँकि उस समय जेल में राजनीतिक कैदी बहुत ज्यादा थे, अतः उनकी देखरेख करना और उन्हें काबू में रखना बहुत मुश्किल था। जेलर उन आठ कैदियोंको अलग रखनेको व्यवस्था नहीं कर सका और वे अपने दूसरे संगी-साथियोंके बीच फैल गये और फिर हमारे हाथ ही नहीं लगे इसलिए हम उन्हें सख्त कामपर नहीं लगा सके।
३ फरवरीको संयुक्त मजिस्ट्रेट और मैंने इन 'गैर-राजनीतिक' कैदियोंको दूसरे कैदियोंसे अलग करनेका निश्चय किया। कुछ थोड़ी परेशानीके बाद उनमें से रामनाथ, कमलापति, भगवानदास और सत्यनारायण, चार कैदी पकड़में आ गये। उन्हें नियमित किशोर कैदियोंके अहाते में भेज दिया गया। इस जिला जेल में बहुत दिनोंसे किशोर कैदियोंके लिए एक अलग जेल है। इसलिए इन लड़कोंको वहाँ भेजना चलनके मुताबिक हो था। जहाँतक मुझे याद हैं पिछले सात सालोंमें ५० लड़के तो मेरी ही निगरानी में रह चुके हैं। इस बैरकमें अलग-अलग कोठरियाँ रखनेका उद्देश्य स्पष्ट है। रातमें लड़के हमेशा अलग-अलग कोठरियों में बन्द किये जाते हैं। इसलिए इन चारों लड़कोंको अलग-अलग कोठरियोंमें रखना कोई सजा नहीं थी, बल्कि जेलका एक सामान्य नियम था। यह स्पष्ट है कि उनको अपने राजनीतिक साथियोंसे अलग हो जाना अच्छा नहीं लगा; इसलिए ४ फरवरीकी शामको भगवानदासने 'बेहोशी' का स्वांग रचा। यह बात शामके लगभग ७-३० बजे की है। मैं उस वक्त जेलमें ही था; खबर पाते ही वहाँ गया और लड़केको देखा। बहुत ध्यानसे उसकी परीक्षा की और इस नतीजेपर पहुँचा कि उसे कुछ नहीं हुआ है और उसने जान-बूझकर बेहोशीका ढोंग रच रखा है। यह जरूर है कि दो दिनसे उसने खाना-पीना बन्द कर रखा था; यह बात भी उसकी हालतका एक कारण हो सकती है। उसने शायद यह सोचा हो कि यदि वह झूठसूठ बेहोश हो जायेगा तो उसे अस्पताल भेज दिया जायेगा और उसे वहाँ कुछ पोष्टिक खुराक मिल सकेगी। दरअसल यही हुआ भी। उसे कुछ दूध दिया गया और वह सुबहतक बिलकुल ठीक हो गया।
दूसरे राजनीतिक कैदियोंने ३ से ५ तारीखतक जो भूख हड़ताल की, उसका इस मामलेसे कोई सम्बन्ध नहीं था। वह बाहरसे मिठाई और खाना मँगानेकी इजाजत न देनेपर शुरू की गई थी। साथ ही, वह एक प्रकारका प्रचार था।
२ फरवरीकी रातको कृपलानी[१] और उनके साथी युवकोंने बन्द किये जाते वक्त बहुत ही परेशानी पैदा की। वे अपनी बैरकमें हुल्लड़बाजोंकी तरह
  1. आचार्य जीवतराम वी॰ कृपलानी (जन्म १८८८)।